एक छोटी सी चिप कंपनी में छिड़ी जंग, अमेरिका-चीन की लड़ाई में कैसे थम गए दुनिया भर की गाड़ियों के पहिए?
यूरोप की एक सेमीकंडक्टर कंपनी के अंदर चल रही कब्जे की लड़ाई ने दुनिया भर की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में भूचाल ला दिया है। नीदरलैंड में स्थित चीन के मालिकाना हक वाली कंपनी 'नेक्सपेरिया' पर कंट्रोल को लेकर ऐसा घमासान मचा कि गाड़ियों में लगने वाले बेहद जरूरी पुर्जों की सप्लाई ही रुक गई। नतीजा यह हुआ कि जापान की जानी-मानी कंपनी होंडा को मेक्सिको में अपने एक बड़े प्लांट में गाड़ियों का उत्पादन रोकना पड़ गया।
कहानी शुरू हुई नीदरलैंड से
यह पूरा संकट अक्टूबर के महीने में तब शुरू हुआ जब नीदरलैंड की सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए, नेक्सपेरिया पर कंट्रोल करने के लिए दूसरे विश्व युद्ध के समय का एक बहुत पुराना कानून इस्तेमाल कर लिया। सरकार का कहना था कि कंपनी के मैनेजमेंट में कुछ ऐसी गंभीर खामियां हैं, जिनसे यूरोप की टेक्नोलॉजी विदेशियों के हाथ लगने का खतरा है।
इस कदम से कंपनी की चीनी मालिक, 'विंगटेक टेक्नोलॉजी' (जिसमें चीन सरकार की भी कुछ हिस्सेदारी है) किनारे हो गई। साथ ही, एक डच अदालत ने कंपनी के चीनी CEO को भी पद से हटा दिया।
अमेरिका-चीन के बीच फंसा नीदरलैंड
लेकिन असली कहानी तो इसके बाद सामने आई। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिकी अधिकारियों ने नीदरलैंड को बताया था कि अगर वे अमेरिकी व्यापार प्रतिबंधों से बचना चाहते हैं, तो उन्हें चीनी CEO को हटाना ही होगा। दरअसल, अमेरिका ने पिछले साल ही चीनी कंपनी विंगटेक को अपनी ट्रेड ब्लैकलिस्ट में डाल दिया था और अब वह नेक्सपेरिया जैसी उसकी सहयोगी कंपनियों पर भी शिकंजा कस रहा था।
इस दखलंदाजी ने नीदरलैंड को दो पाटों के बीच फंसा दिया। एक तरफ अमेरिका का सुरक्षा दबाव था, तो दूसरी तरफ चीन का गुस्सा झेलने का डर। जैसे ही नीदरलैंड ने नेक्सपेरिया पर कंट्रोल किया, चीन ने तुरंत पलटवार कर दिया। उसने नेक्सपेरिया के चीन वाले प्लांट से चिप्स के एक्सपोर्ट पर ही रोक लगा दी और आरोप लगाया कि डच सरकार दुनिया की सप्लाई चेन में chaos पैदा कर रही है।
आखिर ये नेक्सपेरिया करती क्या है?
नेक्सपेरिया कोई एनवीडिया या TSMC जैसी ग्लैमरस चिप बनाने वाली कंपनी नहीं है। यह बहुत ही सरल लेकिन गाड़ियों के लिए बेहद जरूरी चिप्स बनाती है, जैसे स्विच, डायोड और लॉजिक चिप्स। ये चिप्स इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरी से लेकर गाड़ी की हेडलाइट्स और ब्रेक सिस्टम तक, हर जगह इस्तेमाल होते हैं। यूं समझिए कि भले ही कार की कीमत में इन चिप्स का हिस्सा बहुत कम हो, लेकिन इनके बिना कार बन ही नहीं सकती।
गाड़ियों की दुनिया पर असर
नेक्सपेरिया के चिप्स की सप्लाई रुकते ही दुनिया भर की कार कंपनियों में हड़कंप मच गया। होंडा ने तो मेक्सिको में अपना प्लांट ही बंद कर दिया, जहां से उत्तरी अमेरिकी बाजार के लिए हर साल 2 लाख गाड़ियां बनती हैं।
जनरल मोटर्स (GM) ने कहा कि उनकी टीमें इस संकट से निपटने के लिए सप्लायर्स के साथ "दिन-रात" काम कर रही हैं। निसान और मर्सिडीज-बेंज जैसी कंपनियां दुनिया भर में दूसरे सप्लायर्स ढूंढने के लिए भागदौड़ कर रही हैं। बीएमडब्ल्यू, फॉक्सवैगन और वोल्वो जैसी कंपनियां फिलहाल अपने रिजर्व स्टॉक से काम चला रही हैं, लेकिन यह बस कुछ ही दिनों का जुगाड़ है।
क्या कोई समाधान है?
इस बीच एक उम्मीद की किरण दिखाई दी है। हाल ही में अमेरिकी और चीनी राष्ट्रपतियों की एक मुलाकात हुई, जिसमें दोनों देशों ने व्यापारिक तनाव को कम करने पर सहमति जताई है। इसमें चिप निर्यात पर लगे प्रतिबंधों में ढील देना भी शामिल है।
इस मुलाकात के बाद, नीदरलैंड के आर्थिक मामलों के मंत्री को भरोसा है कि चीन से यूरोप के लिए चिप्स की शिपमेंट जल्द ही फिर से शुरू हो जाएगी। होंडा ने भी पुष्टि की है कि उन्हें शिपमेंट शुरू होने के संकेत मिले हैं और वे 21 नवंबर के हफ्ते से अपने मेक्सिको प्लांट में फिर से उत्पादन शुरू करने की योजना बना रहे हैं।
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