2027 तो दूर है, पर अखिलेश ने अभी से खोल दिए अपने पत्ते! अब ‘सिफारिश’ नहीं, ‘रिपोर्ट कार्ड’ से मिलेगा टिकट

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उत्तर प्रदेश की राजनीति का खेल कुछ ऐसा है कि यहां अगली बाजी की तैयारी हार या जीत के तुरंत बाद ही शुरू हो जाती है। 2027 का विधानसभा चुनाव अभी लगभग तीन साल दूर है, लेकिन लगता है कि लगातार दो बड़ी हारों से सबक लेकर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस बार अपना ‘गेम प्लान’ पूरी तरह बदल दिया है।

अब टिकट के लिए आखिरी समय की भागदौड़, बड़े नेताओं की सिफारिश या जातिगत समीकरणों का हवाई गणित नहीं चलेगा। अखिलेश यादव ने एक ऐसा ‘नया फॉर्मूला’ तैयार किया है, जो पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं की भी नींद उड़ा सकता है।

क्या था पुराना ‘दर्द’?

अक्सर चुनावों में यह देखा गया है कि सपा आखिरी समय तक टिकटों का फैसला करती थी, जिससे कई बार गलत उम्मीदवार चुन लिए जाते थे। कई ‘पैराशूट’ नेता (जो सिर्फ चुनाव के समय आते हैं) टिकट ले जाते थे और जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ता बस देखते रह जाते थे। नतीजा? हार।

क्या है यह नया ‘रिपोर्ट कार्ड’ वाला फॉर्मूला?

इस बार अखिलेश यादव ने तय किया है कि टिकट का फैसला चुनाव से कुछ महीने पहले नहीं, बल्कि तीन साल पहले से ही शुरू हो जाएगा। हर उस व्यक्ति का एक ‘रिपोर्ट कार्ड’ तैयार किया जाएगा जो 2027 में सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने का सपना देख रहा है।

इस रिपोर्ट कार्ड में तीन चीजों पर नंबर दिए जाएंगे:

  1. जनता के बीच कितनी पकड़ है?: क्या आप सिर्फ लखनऊ के दफ्तरों में दिखते हैं या अपने क्षेत्र की जनता के सुख-दुःख में भी शामिल होते हैं? महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर आप जनता के साथ कितना खड़े रहते हैं?
  2. पार्टी के लिए कितना पसीना बहाया?: क्या आप पार्टी द्वारा आयोजित धरना-प्रदर्शनों और कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं या सिर्फ अपने पोस्टर लगवाने में व्यस्त रहते हैं?
  3. कितने वफादार हैं?: पार्टी के प्रति आपकी वफादारी कितनी है, इस पर भी पैनी नजर रखी जाएगी।

साफ संदेश: ‘पैराशूट वालों’ की अब ‘नो एंट्री’

इस नए फॉर्मूले का सबसे बड़ा और सीधा संदेश है - अब चुनाव से ठीक पहले किसी दूसरे दल से आए या हवा में टपके किसी भी नेता को टिकट नहीं दिया जाएगा। टिकट उसी को मिलेगा जिसने अगले तीन साल तक जमीन पर काम किया है, पार्टी के लिए संघर्ष किया है और जनता का विश्वास जीता है।

अखिलेश यादव का यह कदम दिखाता है कि वे अब कोई भी चांस नहीं लेना चाहते। वह एक-एक सीट पर, एक-एक उम्मीदवार को बहुत पहले से परख लेना चाहते हैं, ताकि 2027 में जब चुनावी बिगुल बजे, तो उनकी सेना का हर ‘योद्धा’ लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार हो।

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