Mahagathbandhan : क्या राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा बिहार में कांग्रेस का चुनावी सूखा खत्म कर पाएगी?
News India Live, Digital Desk: बिहार की राजनीति में इन दिनों एक नई हलचल है. राहुल गांधी की 'वoter अधिकार यात्रा' ने न सिर्फ कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नया जोश भरा है, बल्कि पूरे प्रदेश के सियासी समीकरणों पर भी सोचने को मजबूर कर दिया है. सवाल यह है कि क्या यह यात्रा आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित होगी? क्या सालों से बिहार में अपनी सियासी जमीन तलाश रही कांग्रेस को इस यात्रा से कोई संजीवनी मिलेगी?
राहुल गांधी ने यह यात्रा बिहार की मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों के मुद्दे पर शुरू की थी उनका आरोप था कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और चुनाव आयोग ने मिलकर 65 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए हैं इसी 'वोट चोरी' के आरोप को केंद्र में रखकर उन्होंने 16 दिनों तक बिहार के 25 जिलों में करीब 1300 किलोमीटर की यात्रा की.इस दौरान वे गांव-गांव गए, लोगों से मिले, बाइक की सवारी की और स्थानीय 'गमछे' में भी नजर आए.
यात्रा का असर: जोश और एकजुटता
इस यात्रा का एक बड़ा असर यह हुआ है कि बिहार में कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता, जो लंबे समय से सुस्त पड़े थे, वे फिर से सक्रिय हो गए हैं यात्रा में उमड़ी भीड़ ने कांग्रेस नेताओं का मनोबल बढ़ाया है. इसके अलावा, यात्रा में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता तेजस्वी यादव, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और वामपंथी दलों के नेताओं के शामिल होने से विपक्षी एकता का भी एक मजबूत संदेश गया है.
राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दौरान सिर्फ मतदाता सूची का मुद्दा ही नहीं उठाया, बल्कि बेरोजगारी, महंगाई और अग्निवीर योजना जैसे मुद्दों पर भी सरकार को घेरा.इससे उन्होंने समाज के अलग-अलग वर्गों, खासकर युवाओं और किसानों से जुड़ने की कोशिश की है.
चुनौतियां और सवाल
हालांकि, इस यात्रा की सफलता को लेकर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक प्रशांत किशोर का मानना है कि इस यात्रा का बिहार में कोई खास असर नहीं होगा, क्योंकि राज्य में कांग्रेस सिर्फ आरजेडी की पिछलग्गू बनकर रह गई है और लोग राहुल गांधी को गंभीरता से नहीं लेते
एक और बड़ी चुनौती यह है कि यात्रा के दौरान उठाया गया 'वोट चोरी' का मुद्दा क्या वाकई चुनावी मुद्दा बन पाएगा? कुछ लोगों का मानना है कि यह एक तकनीकी विषय है और आम जनता के लिए इसे समझना मुश्किल हो सकता है. इसके अलावा, कांग्रेस को इस यात्रा से मिले जनसमर्थन को वोटों में बदलना भी एक बड़ी चुनौती होगी.
बिहार में कांग्रेस का संगठन लंबे समय से कमजोर रहा है 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल 19 सीटें ही जीत पाई थी. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सिर्फ एक यात्रा पार्टी के कमजोर संगठन को मजबूत कर पाएगी?
महागठबंधन में सीटों का पेंच
राहुल गांधी की यात्रा के बाद कांग्रेस अब महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर बेहतर मोलभाव करने की स्थिति में दिख रही है. पार्टी इस बार भी करीब 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है. लेकिन महागठबंधन में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और पशुपति पारस की LJP के धड़े जैसी नई पार्टियों के शामिल होने से सीटों का बंटवारा और भी जटिल हो गया है. RJD जहां 150 से कम सीटों पर लड़ने को तैयार नहीं है, वहीं CPI-ML भी अपनी बढ़ी हुई ताकत के हिसाब से सीटें मांग रही है.
आगे की राह
कुल मिलाकर, राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' ने बिहार में कांग्रेस के लिए एक नई उम्मीद जरूर जगाई है. इस यात्रा ने पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरने और विपक्षी एकता को मजबूत करने का काम किया है. लेकिन इस यात्रा की असली सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि कांग्रेस इस मौके को कैसे भुनाती है. क्या पार्टी अपने संगठन को मजबूत कर पाती है और क्या महागठबंधन में सीटों का सम्मानजनक बंटवारा हो पाता है? इन सवालों के जवाब ही यह तय करेंगे कि कांग्रेस बिहार में अपना राजनीतिक सूखा
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