मणिपुर का दर्द और म्यांमार का कनेक्शन: क्यों सुलग रहा है हमारा पूर्वोत्तर?
मणिपुर आज भी सुलग रहा है। भले ही वहां हिंसा की बड़ी घटनाएँ कम हो गई हैं, लेकिन मैतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच का तनाव और अविश्वास वैसा का वैसा ही है। यह सिर्फ़ एक राज्य की अंदरूनी लड़ाई नहीं है, इसके तार हमारे पड़ोसी देश म्यांमार से जुड़े हैं, और मामला काफ़ी गहरा और उलझा हुआ है।
इसे समझने के लिए हाल की दो घटनाओं पर गौर करना ज़रूरी है। पहली, म्यांमार की फ़ौजी सरकार ने ऐलान किया है कि वो देश में लगे आपातकाल को हटाकर इस साल के अंत तक चुनाव कराएगी। दूसरी, भारत की संसद ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को और छह महीने के लिए बढ़ा दिया है। ये दोनों बातें सुनने में अलग-अलग लगती हैं, लेकिन इनका पूर्वोत्तर की राजनीति पर सीधा और गहरा असर पड़ने वाला है।
क्या है म्यांमार का कनेक्शन?
म्यांमार में इस वक़्त भयानक गृहयुद्ध जैसे हालात हैं। वहां की सेना का अपने ही देश के कई सीमावर्ती इलाकों पर कंट्रोल लगभग ख़त्म हो चुका है, ख़ासकर उन इलाकों पर जिनकी सीमा चीन और भारत के मणिपुर-मिजोरम से लगती है। मणिपुर में रहने वाले कुकी-ज़ो समुदाय के लोगों के रिश्तेदार और परिवार म्यांमार में भी हैं। यही वजह है कि वे भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने का विरोध कर रहे हैं।
सरकार का मानना है कि मणिपुर में तनाव की एक बड़ी वजह म्यांमार से होने वाली अवैध घुसपैठ है। इसी को रोकने के लिए सरकार ने दशकों पुरानी 'मुक्त आवागमन व्यवस्था' (Free Movement Regime) को खत्म कर दिया और 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ लगाने का काम शुरू कर दिया। कुकी-ज़ो समुदाय के लोगों को लगता है कि यह बाड़ उन्हें उनके ही लोगों से अलग कर देगी।
यह समस्या सिर्फ़ लोगों के आने-जाने की नहीं है। पूर्वोत्तर के कई अलगाववादी गुटों के ट्रेनिंग कैंप भी म्यांमार के जंगलों में हैं। म्यांमार की कमजोर सरकार इन पर लगाम नहीं कस पा रही है, और इसका सीधा असर हमारी सुरक्षा पर पड़ता है। हाल ही में जब बाड़ लगाने का विरोध कर रहे म्यांमार के विद्रोही समूहों और भारतीय सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ हुई, तो उनके पास से एके-47 और रॉकेट लॉन्चर जैसे ख़तरनाक हथियार मिले। यह बताता है कि सीमा पर तनाव कितना ज़्यादा है।
सिर्फ़ बाड़ लगाना ही हल नहीं
मणिपुर की लड़ाई सिर्फ़ ज़मीन या घुसपैठ की नहीं है, यह पहचान और अस्तित्व की लड़ाई बन चुकी है। मैतेई समुदाय को लगता है कि बाहर से आए लोगों की वजह से उनका हक़ छीना जा रहा है, जबकि कुकी-ज़ो समुदाय को अपनी सुरक्षा और भविष्य की चिंता है।
ऐसे में सिर्फ़ सीमा पर बाड़ लगा देना या सेना तैनात कर देना इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। ज़रूरत इस बात की है कि सरकार दोनों समुदायों के लोगों से बात करे, उनका भरोसा जीते और एक राजनीतिक समाधान निकाले। म्यांमार में होने वाले चुनाव और वहां की अस्थिरता का असर सीधे तौर पर भारत पर पड़ेगा। इसलिए, हमें और भी ज़्यादा सतर्क रहने और एक मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने की ज़रूरत है, ताकि पूर्वोत्तर की इस आग को और भड़कने से रोका जा सके।
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