नई दिल्ली की रेड लाइन: क्यों ट्रंप के टैरिफ गुस्से के खिलाफ रणनीतिक डिफाइंस जरूरी है?

Post

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ अपने ट्रेड वार की आक्रामक रणनीति के तहत भारतीय आयात पर टैरिफ को 50% तक बढ़ा दिया है। यह कदम खासतौर पर उस समय आया है जब भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीदारी जारी रखी है, जिस पर ट्रंप ने अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के लिए खतरा बताते हुए इसे एक बहाने के रूप में इस्तेमाल किया। ट्रंप के इस टैरिफ निर्णय ने भारत-अमेरिका के बीच पिछले कई वर्षों के CAREFUL DIPLOMACY द्वारा बनाए गए मजबूत आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को खतरे में डाल दिया है।

टैरिफ वृद्धि का असली कारण भारत को एक व्यापार सौदे पर मजबूर करना है जो अमेरिकी हितों के अनुकूल हो। ट्रंप प्रशासन ने भारत को “टैरिफ किंग” बताते हुए उस पर उच्च व्यापार बाधाएं लगाने का आरोप लगाया है, जो अमेरिका के लिए निर्यात को कठिन बनाती हैं और व्यापार घाटा पैदा करती हैं। हालांकि, अमेरिका अन्य देशों जैसे चीन और यूरोपीय संघ के साथ ऐसे कठोर टैरिफ आचरण नहीं कर रहा है, जिससे भारत के लिए यह कदम अनम्य और अनुचित प्रतीत होता है।

भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपने किसानों और घरेलू उत्पादकों के हितों के लिए “रेड लाइन” खींच चुका है, खासकर कृषि एवं डेयरी उत्पादों पर राष्ट्रीय हितों की रक्षा को सर्वोपरि रखता है। इसके अलावा, भारत ने व्यापार वार्ता में कई महत्त्वपूर्ण समझौतों की पेशकश की थी, जैसे अमेरिकी औद्योगिक वस्तुओं पर शून्य टैरिफ प्रस्तावित करना, लेकिन फिर भी ट्रंप का रुख कठोर बना रहा।

ट्रंप के 50% टैरिफ के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगने की संभावना है। इस कदम से भारतीय निर्यात जैसे वस्त्र, जूते, आभूषण और फार्मास्यूटिकल्स को खास तौर पर नुकसान होगा। विशेषज्ञों के अनुसार, इससे भारत की GDP में 0.5 से 1 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है, और अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता कमजोर हो जाएगी।

नई दिल्ली ने इस टैरिफ को "अन्यायपूर्ण, अनुचित और असंगत" करार दिया है और कहा है कि यह कदम भारत की आर्थिक स्वतंत्रता और राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है। भारत ने अपने तेल आपूर्ति स्रोतों को विविध बनाने और घरेलू विनिर्माण सुधारों को तेज करने के एजेंडे पर ध्यान केंद्रित किया है, ताकि विश्व बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ा सके और किसी एक देश पर निर्भरता कम कर सके।

इस टैरिफ कार्रवाई ने भारत को मजबूर किया है कि वह ट्रंप के "टैरिफ गुस्से" के सामने रणनीतिक डिफाइंस दिखाए, क्योंकि इसके पीछे केवल तेल खरीद को लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा नहीं, बल्कि बड़े स्तर पर व्यापार वार्ता में दबाव बनाने का उपकरण है। भारत के लिए जरूरी है कि वह पैनिक न हो, बल्कि कड़ी कूटनीति, कई देशों के साथ गठजोड़, आर्थिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और घरेलू प्रतिस्पर्धा पर जोर देकर इस चुनौती का मुकाबला करे।

संक्षेप में, ट्रंप के टैरिफ टकराव ने भारत-अमेरिका संबंधों में एक नई 'रेड लाइन' खींच दी है, जो भारत की राष्ट्रीय संप्रभुता और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए रणनीतिक सतर्कता और साहसिक कूटनीति की मांग करती है।

इस चुनौती के आलोक में, भारत को अपने घरेलू सुधारों को गति देनी होगी, निर्यात में विविधता लानी होगी, और व्यापार समझौतों को इस तरह से नेगोशिएट करना होगा कि वे देश के हितों के अनुरूप हों, ताकि अमेरिकी टैरिफ धमकियों से न घबराए बल्कि स्मार्ट और सशक्त रणनीति अपनाए। यही तरीका भारत को इस नए आर्थिक और कूटनीतिक परिदृश्य में सफल बनाएगा।

--Advertisement--

Tags:

--Advertisement--