हिंदू विवाह की रात्रि परंपरा: आखिर क्यों होती हैं शुभ शादियाँ रात में? जानें ज्योतिषीय और धार्मिक कारण
भारतीय संस्कृति में विवाह को एक अत्यंत पवित्र संस्कार माना जाता है। हर रीति-रिवाज के पीछे कोई न कोई गहरा धार्मिक, ज्योतिषीय या सामाजिक कारण छिपा होता है। ऐसा ही एक प्रश्न अक्सर लोगों के मन में उठता है कि आखिर हिंदू विवाह संस्कार ज़्यादातर रात के समय या संध्याकाल में ही क्यों आयोजित किए जाते हैं? इसका उत्तर प्राचीन ज्योतिष और धर्मशास्त्रों में छिपा है।
शुभ मुहूर्त का महत्व:
हिंदू विवाह केवल दो लोगों का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों और आत्माओं का संगम है। इस पवित्र बंधन की शुरुआत के लिए एक ऐसे समय का चयन किया जाता है, जिसे 'शुभ मुहूर्त' कहा जाता है। यह मुहूर्त पंचांग के अनुसार, ग्रह-नक्षत्रों की विशेष स्थिति के आधार पर तय किया जाता है। विवाह के लिए अनुकूल और शक्तिशाली मुहूर्त अक्सर शाम के समय, यानी सूर्यास्त के आसपास या उसके बाद आते हैं।
संध्या काल का विशेष महत्व:
ज्योतिष शास्त्र में, संध्या काल (Twilight Time) या गोधूलि बेला (Goddhuli Vela) का विशेष महत्व है। यह दिन और रात के बीच का संक्रमण काल होता है। माना जाता है कि इस समय पृथ्वी पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाता है। यह वह समय होता है जब गायें चरकर घर लौट रही होती हैं और उनकी खुरों से उड़ने वाली धूल वातावरण में फैलती है, जो शुभ मानी जाती है।
अध्यात्मिक संयोग: ऐसा माना जाता है कि संध्या काल वह पवित्र समय है जब देव लोक और पृथ्वी लोक के बीच संचार सुगम हो जाता है। इस दौरान किए गए विवाह संस्कार अधिक फलदायी होते हैं और नव-दंपति को देवी-देवताओं का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
ग्रहों की स्थिति: ज्योतिष के अनुसार, कुछ प्रमुख ग्रह-नक्षत्र विवाह के लिए रात के समय अधिक अनुकूल स्थिति में होते हैं, जिससे नव-विवाहित जोड़े के भविष्य के लिए स्थिरता और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
प्रमुख रस्में और रात्रि का समय:
कन्यादान: कन्यादान जैसी महत्वपूर्ण रस्म, जिसमें पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में सौंपता है, अक्सर शुभ संध्या मुहूर्त में ही की जाती है।
सप्तपदी: विवाह का सबसे महत्वपूर्ण अंग सप्तपदी (सात फेरे) है, जिसे वर-वधू अग्नि के समक्ष सात वचन लेते हुए पूर्ण करते हैं। यह रस्म भी अधिकतर रात्रि या संध्या के शुभ मुहूर्त में ही संपन्न होती है।
मंगलसूत्र और सिंदूरदान: ये रस्में भी विवाह की रात्रि बेला में ही पूरी की जाती हैं, जो दांपत्य जीवन की शुरुआत का प्रतीक हैं।
संक्षेप में, हिंदू विवाह के लिए रात्रि या संध्या काल को चुनने के पीछे ज्योतिषीय गणनाओं और पौराणिक मान्यताओं का गहरा आधार है, जिनका उद्देश्य नव-विवाहित जोड़े के सुखमय, समृद्ध और आध्यात्मिक जीवन की कामना करना है।
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