रणवीर की फिल्म पर उठा बवाल, तो 45 साल पुराने एक्टर ने आलोचकों को पढ़ाया रामायण का पाठ

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News India Live, Digital Desk : रणवीर सिंह की 2025 की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'धुरंधर' (Dhurandhar) सिनेमाघरों में धूम मचा रही है। एक तरफ दर्शक आदित्य धर के डायरेक्शन की तारीफ कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ एक वर्ग ऐसा भी है जिसे फिल्म में दिखाई गई हिंसा (Violence) कुछ ज्यादा ही लग रही है। सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी है कि क्या आज की फिल्मों में इतना खून-खराबा दिखाना जरूरी है?

इस गरमा-गरम बहस के बीच, फिल्म में एक अहम किरदार निभा रहे हम सबके चहेते राकेश बेदी ने आलोचकों को ऐसा जवाब दिया है कि सबकी बोलती बंद हो गई है।

"विलेन बातों से नहीं मानते"

राकेश बेदी, जिन्हें हमने अक्सर कॉमेडी सीरियल्स में हंसाते हुए देखा है, इस बार एक खूंखार पाकिस्तानी नेता 'जमील जमाली' के रोल में हैं। जब उनसे फिल्म में हिंसा के लेवल के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने बड़ी साफ़गोई से एक पौराणिक उदाहरण दिया।

उन्होंने कहा, "जब सामने बुराई का अंत करना हो, तो हिंसा जरूरी हो जाती है। क्या भगवान राम ने रावण को बिना किसी हिंसा के मार दिया था? क्या सिर्फ बातें करके युद्ध जीता गया था?"

राकेश जी का तर्क बड़ा सीधा था। उनका कहना है कि फिल्म की कहानी जिस दुनिया में सेट है, वहां आतंकवाद और जासूसी का खेल चल रहा है। ऐसे खतरनाक मिशन पर आप "प्यार और शांति" से नहीं जीत सकते। उन्होंने अपने खास अंदाज में चुटकी लेते हुए कहा, "अब ऐसा तो है नहीं कि मैं सीटी मारूंगा और विलेन मर जाएगा। विलेन को मारने के लिए लड़ना पड़ता है।"

डायरेक्टर के विजन का किया समर्थन

बेदी जी ने निर्देशक आदित्य धर का पूरा साथ दिया। उनका मानना है कि 'उरी' जैसी फिल्म बनाने वाले आदित्य को पता है कि दर्शक क्या देखना चाहते हैं। जब आप 'इंटेलिजेंस' और 'सीक्रेट मिशन' वाली कहानी दिखाते हैं, तो उसमें गोलियां चलेंगी ही, आरती की थाली नहीं घूमेगी। यह फिल्म की स्क्रिप्ट की मांग है, न कि जबरदस्ती डाली गई हिंसा।

करियर का सबसे अलग रोल

मजेदार बात यह है कि पिछले 45 सालों से दर्शकों को हंसाने वाले राकेश बेदी पहली बार इतना सीरियस और निगेटिव रोल कर रहे हैं। वो कहते हैं कि एक एक्टर के तौर पर यह उनके लिए बड़ा चैलेंज था। फिल्म की सफलता बता रही है कि उनका यह नया अवतार भी लोगों को पसंद आ रहा है।

कुल मिलाकर, राकेश बेदी ने साफ़ कर दिया है कि अगर आपको सिनेमा में "अच्छाई की जीत" देखनी है, तो बुराई का अंत देखने की हिम्मत भी रखनी होगी चाहे तरीका कितना भी खूंखार क्यों न हो।

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