जब देश में फैक्ट्रियों से ज्यादा मदरसे हों... पाकिस्तान के भविष्य पर एक बड़ा सवालिया निशान
एक तरफ जहां दुनिया भर के देश अपनी आर्थिक तरक्की का ढिंढोरा अपनी बढ़ती फैक्ट्रियों, मिलों और कंपनियों के दम पर पीटते हैं, वहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान से एक ऐसी हकीकत सामने आई है, जिसने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है। पाकिस्तान में हाल ही में 18 साल के लंबे अंतराल के बाद पहली आर्थिक जनगणना की गई, और इस जनगणना के जो आंकड़े सामने आए हैं, वे बेहद चौंकाने वाले और देश की आर्थिक दिशा पर गंभीर सवाल खड़े करने वाले हैं।
आंकड़े जो कहानी बयां करते हैं
इस सरकारी जनगणना के मुताबिक, पूरे पाकिस्तान में धार्मिक संस्थानों, यानी मस्जिदों, मदरसों, और दरगाहों की कुल संख्या लगभग 3,74,000 है।
अब जरा इस आंकड़े की तुलना देश के उन संस्थानों से कीजिए जो रोजगार पैदा करते हैं और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाते हैं। जनगणना बताती है कि पाकिस्तान में मैन्युफैक्चरिंग यानी कुछ बनाने वाली फैक्ट्रियों की कुल संख्या सिर्फ 31,000 है।
यह आंकड़ा हमें एक हैरान करने वाली तस्वीर दिखाता है:
- पाकिस्तान में हर 1 फैक्ट्री के मुकाबले 12 धार्मिक स्थल मौजूद हैं।
- यह अनुपात देश के आर्थिक ढांचे में एक बहुत बड़े असंतुलन की ओर इशारा करता है, जहां जोर उत्पादन और रोजगार पैदा करने वाली इकाइयों से ज्यादा कहीं और है।
यह सिर्फ फैक्ट्रियों की ही बात नहीं है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि देश में चल रहे कुल कारोबार, दुकानों, और कंपनियों की संख्या भी सिर्फ 2,83,000 है, जो धार्मिक संस्थानों की संख्या से काफी कम है।
क्या हैं इस असंतुलन के मायने?
अर्थशास्त्रियों और समाज के जानकारों के लिए यह कोई अच्छी खबर नहीं है। किसी भी देश की तरक्की का पैमाना उसकी उत्पादक क्षमता होती है। फैक्ट्रियां और उद्योग न सिर्फ सामान बनाते हैं, बल्कि लाखों लोगों को रोजगार देते हैं, जिससे लोगों की खरीदने की शक्ति बढ़ती है और अर्थव्यवस्था का पहिया घूमता है।
पाकिस्तान पहले से ही एक गंभीर आर्थिक संकट और कर्ज के बोझ से जूझ रहा है। ऐसे में, यह जनगणना इस बात का एक कड़वा सबूत है कि पिछले दो दशकों में देश की प्राथमिकताएं क्या रही हैं। यह आंकड़े दिखाते हैं कि देश में उत्पादक संपत्तियों (Productive Assets) को बनाने की जगह, ध्यान कहीं और ही केंद्रित रहा है।
अब यह पाकिस्तान के नीति निर्माताओं के लिए एक बड़ी चुनौती है कि वे इस असंतुलन को कैसे दूर करेंगे और देश को आर्थिक आत्मनिर्भरता के रास्ते पर कैसे लाएंगे।
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