जब एक माँ की ग़लती से उजड़ गई उसकी दुनिया, फिर इस व्रत ने किया चमत्कार

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अहोई अष्टमी का दिन हर माँ के लिए बहुत ख़ास होता है। यह वो दिन है जब माँएं अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छी सेहत और खुशियों के लिए बिना कुछ खाए-पिए व्रत रखती हैं। इस व्रत की पूजा जितनी ज़रूरी है, उतनी ही ज़रूरी है इसकी कथा सुनना। कहते हैं कि इस कहानी के बिना यह व्रत अधूरा रह जाता है।

तो चलिए, आज हम आपको वही कहानी सुनाते हैं, जिसने इस व्रत को इतना ख़ास बना दिया।

एक भरे-पूरे परिवार की कहानी

बहुत समय पहले की बात है, एक शहर में एक साहूकार रहता था जिसके सात बेटे थे। दिवाली का त्योहार आने वाला था और घर में रंगाई-पुताई की तैयारी चल रही थी। घर की दीवारें लीपने के लिए साहूकार की पत्नी जंगल से मिट्टी लेने गई।

और फिर हुई वो अनहोनी

जब वह कुदाल से मिट्टी खोद रही थी, तो ग़लती से उसकी कुदाल पास में ही बनी एक सेही (Syahu) की मांद पर जा लगी। सेही एक जानवर होता है, और उस मांद में उसके छोटे-छोटे बच्चे सो रहे थे। कुदाल की चोट से एक बच्चे की उसी समय मौत हो गई।

अपने बच्चे को मरा हुआ देखकर सेही माँ को बहुत क्रोध आया और उसने दुखी होकर साहूकार की पत्नी को श्राप दे दिया, "जिस तरह तुमने मेरे बच्चे को मारा है, ठीक उसी तरह तुम भी अपनी संतान के लिए तरसोगी।"

श्राप का असर और एक माँ का दर्द

इस श्राप का असर इतना भयानक हुआ कि सालभर के अंदर ही साहूकार के सातों बेटों की एक-एक करके मृत्यु हो गई। अपने सभी बच्चों को खोकर पति-पत्नी पूरी तरह टूट गए। उनका हँसता-खेलता घर उजड़ चुका था।

एक दिन, जब वो पूरी तरह निराश हो चुके थे, तो उन्होंने अपने प्राण त्यागने का फ़ैसला किया। तभी वहाँ देवी पार्वती प्रकट हुईं और उन्हें ऐसा करने से रोका। जब साहूकार की पत्नी ने रोते-रोते उन्हें अपनी पूरी कहानी सुनाई, तो माँ पार्वती ने उसे पश्चाताप का रास्ता दिखाया।

जब भक्ति ने बदली क़िस्मत

माँ पार्वती ने कहा, "तुम उसी सेही की मांद के पास जाकर उसकी पूजा करो और अपनी ग़लती की माफ़ी माँगो। वही देवी का रूप है और तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर तुम्हें माफ़ कर देगी।"

साहूकार की पत्नी ने ठीक वैसा ही किया। वह अहोई अष्टमी का दिन था। उसने पूरे दिन भूखे-प्यासे रहकर व्रत किया और सच्ची श्रद्धा से सेही माता की आराधना की। उसकी सच्ची भक्ति, लगन और पश्चाताप देखकर सेही माता का दिल पिघल गया। वो प्रसन्न हुईं और उसे दर्शन दिए। उन्होंने न सिर्फ़ साहूकारनी को माफ़ किया, बल्कि उसके सातों बेटों को फिर से जीवित कर दिया।

कहते हैं कि उसी दिन से हर माँ अपनी संतान की रक्षा और लंबी उम्र के लिए अहोई अष्टमी का यह पवित्र व्रत रखती है और इस कथा को सुनकर अपने व्रत को पूरा करती है।

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