US-India : अमेरिकी अधिकारी की ब्राह्मण टिप्पणी का बचाव करने वालों पर भड़कीं निर्मला सीतारमण

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News India Live, Digital Desk: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिका के एक शीर्ष अधिकारी द्वारा भारतीयों के लिए 'ब्राह्मण' शब्द का इस्तेमाल किए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है. उन्होंने इस भाषा का बचाव करने वाले भारतीयों को "साम्राज्यवादियों का दोस्त" करार दिया है और इस तरह की मानसिकता को सिरे से खारिज करने की अपील की है

क्या है पूरा मामला?

यह विवाद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार, पीटर नवारो के एक बयान से शुरू हुआ.नवारो ने आरोप लगाया था कि यूक्रेन संघर्ष के दौरान भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने का फायदा "ब्राह्मणों" को हो रहा है. उनके इस बयान के बाद भारत में तीखी प्रतिक्रिया हुई और इसे जातिवादी और भारत के सामाजिक ताने-बाने पर हमले के तौर पर देखा गया.

'बोस्टन ब्राह्मिन्स' की दलील पर भड़कीं वित्त मंत्री

नवारो के बयान के बाद, भारत में कुछ नेताओं और विश्लेषकों ने यह दलील दी कि नवारो का मतलब भारतीय जाति व्यवस्था वाले 'ब्राह्मण' से नहीं, बल्कि अमेरिकी कहावत 'बोस्टन ब्राह्मिन्स' (Boston Brahmins) से था. यह शब्द अमेरिका में पुराने अमीर और कुलीन परिवारों के लिए इस्तेमाल होता है तृणमूल कांग्रेस की नेता सागरिका घोष और साकेत गोखले जैसे नेताओं ने भी यही स्पष्टीकरण दिया था.

लेकिन, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस स्पष्टीकरण को सिरे से खारिज कर दिया.उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, “यह अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो' वाली नीति का ही एक रूप है, जिसे साम्राज्यवादियों ने यहां इस्तेमाल किया था.”

उन्होंने गुस्से भरे लहजे में कहा, “आज साम्राज्यवादियों के दोस्त हमें बता रहे हैं कि 'बोस्टन ब्राह्मिन्स' का मतलब यह होता है, वो नहीं. किसे परवाह है? माफ कीजिए, लेकिन किसे परवाह है? मैं चाहती हूं कि भारतीय खुद अपने लिए सोचें.”

आत्मसम्मान की अपील

सीतारमण ने इस तरह की भाषा का बचाव करने वाले भारतीयों से आत्मसम्मान की भावना जगाने की अपील की. उन्होंने कहा, “मैं उन भारतीयों से कहना चाहती हूं जो अब उस भाषा का बचाव कर रहे हैं कि वे उठें और कहें, 'हम अब 75-80 से अधिक वर्षों से आप सभी से स्वतंत्र हैं. हम अपना काम खुद देखेंगे, हम अपना ख्याल रखेंगे. इन शब्दों का उपयोग करने से बचें'.”

वित्त मंत्री का मानना है कि विदेशी अधिकारियों द्वारा ऐसी अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया जाना एक बात है, लेकिन जब खुद भारतीय ही उस भाषा को सही ठहराने की कोशिश करते हैं तो यह ज्यादा दुखद और अपमानजनक होता है. उन्होंने साफ कहा कि भारतीयों को ऐसी किसी भी सफाई की जरूरत नहीं है जो औपनिवेशिक मानसिकता को सही ठहराती हो

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