जिंदगी भर बढ़ता रहता है ये अंग, बुढ़ापे में दिखने लगता है अलग! जानकर हैरान रह जाएंगे आप

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मानव शरीर एक ऐसा चमत्कार है जो हमें हर दिन हैरान करता है। हमारे शरीर के अंग बचपन से लेकर वयस्क होने तक विकसित होते रहते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ अंग ऐसे भी हैं जो मृत्यु तक बढ़ते रहते हैं? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं कान और नाक की, जो न सिर्फ़ उम्र के साथ बढ़ते हैं, बल्कि बुढ़ापे में भी खिंचाव के कारण लटकते और लंबे दिखाई देते रहते हैं। यह अनोखा तथ्य सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, मानव शरीर में कान और नाक दो ऐसे अंग हैं जो जीवन भर बढ़ते रहते हैं। आपको यह सुनकर आश्चर्य हो सकता है क्योंकि आमतौर पर हम सोचते हैं कि शरीर का विकास किशोरावस्था तक पूरा हो जाता है। लेकिन कान और नाक में मौजूद कार्टिलेज ऊतक उम्र के साथ बढ़ते रहते हैं।

कार्टिलेज एक लचीला ऊतक है जो हड्डियों से भी लंबा होने की क्षमता रखता है। इसके अलावा, जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, त्वचा अपनी लोच खो देती है और हड्डियाँ कमज़ोर होने लगती हैं। इससे कान और नाक पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव ज़्यादा पड़ता है, जिससे वे नीचे लटकने लगते हैं और लंबे दिखाई देने लगते हैं।

दिल्ली की प्रसिद्ध त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम शर्मा कहती हैं, "कान और नाक की कार्टिलेज उम्र के साथ बढ़ती रहती है, लेकिन यह वृद्धि बहुत धीमी होती है। औसतन, कान और नाक की लंबाई हर दशक में 0.22 मिमी बढ़ सकती है। बुढ़ापे में, त्वचा की कम लोच और गुरुत्वाकर्षण के कारण, ये अंग लंबे और लचीले दिखाई देते हैं।" इसका मतलब है कि अगर आपकी उम्र 70 साल है, तो आपके कान और नाक बचपन की तुलना में लगभग 1.5 से 2 सेमी लंबे हो सकते हैं।

मानव शरीर बेहद रहस्यमयी है। कई अध्ययनों से पता चला है कि उम्र के साथ चेहरे की बनावट बदलती है। नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ (NIH) के एक शोध के अनुसार, उम्र के साथ नाक की कार्टिलेज नरम और कमज़ोर हो जाती है, जिससे उसका आकार बदल जाता है।

यही वजह है कि बुज़ुर्गों की नाक अक्सर चौड़ी और लंबी दिखाई देती है। इसी तरह, उम्र बढ़ने के साथ कानों के लोब भी लटकने लगते हैं, खासकर उन लोगों के जो भारी झुमके पहनते हैं। इस बात ने सोशल मीडिया पर लोगों का ध्यान खींचा है और कई लोग इसे मज़ाकिया अंदाज़ में शेयर कर रहे हैं।

एक यूजर ने लिखा, "अब समझ आया दादाजी के कान इतने बड़े क्यों हैं!" वहीं, कुछ लोगों ने इसका मज़ाक उड़ाते हुए कहा, "कान और नाक की रेस कौन जीतेगा?" लेकिन इस मज़ाक के पीछे एक गंभीर वैज्ञानिक सच्चाई छिपी है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से प्राकृतिक है और हर इंसान में अलग-अलग स्तर पर होती है।

 

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