यह इमामबाड़ा नहीं, रोशनी का महल है!
लखनऊ के पुराने हुसैनाबाद इलाके में एक ऐसी इमारत है, जिसे देखकर लगता है मानो किसी ने आसमान से सारे चाँद-सितारे उतारकर ज़मीन पर सजा दिए हों. इसे कहते हैं हुसैनाबाद इमामबाड़ा, लेकिन इसकी खूबसूरती और अंदर की जगमगाहट के कारण लोग इसे प्यार से छोटा इमामबाड़ा या 'पैलेस ऑफ लाइट्स' (रोशनी का महल) कहते हैं.
यह सिर्फ एक इमामबाड़ा नहीं, बल्कि अवध के तीसरे नवाब, मुहम्मद अली शाह, और उनकी माँ की आखिरी आरामगाह (मकबरा) भी है.
कैसा है यह रोशनी का महल?
जैसे ही आप इसके सफेद दरवाजे से अंदर कदम रखते हैं, आप एक अलग ही दुनिया में पहुंच जाते हैं.
इसकी दीवारों के पीछे दफन हैं खुद नवाब मुहम्मद अली शाह और उनकी माँ. उनकी कब्रों के चारों ओर चांदी की खूबसूरत रेलिंग लगी है. यहां आज भी नवाब का चांदी का सिंहासन, रानी का दीवान और हाथ से लिखी गईं कुरान की दो बहुत पुरानी और कीमती प्रतियां संभालकर रखी गई हैं.
नवाब की दूर की सोच
नवाब मुह-मद अली शाह जानते थे कि उनकी यह अनमोल विरासत हमेशा ऐसी ही चमकती रहे. इसलिए, उन्होंने एक ट्रस्ट बनाया और उस ज़माने में छत्तीस लाख रुपये जमा किए, ताकि इस इमामबाड़े की देखरेख और मुहर्रम के आयोजन में कभी कोई कमी न आए.
एक ही शहर, दो अनमोल इमामबाड़े
जब हम छोटे इमामबाड़े की बात करते हैं, तो बड़े इमामबाड़े (आसफ़ी इमामबाड़ा) का ज़िक्र भी ज़रूरी है.
आज छोटा इमामबाड़ा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की देखरेख में है, जो यह सुनिश्चित करता है कि नवाब का यह 'रोशनी का महल' आने वाली पीढ़ियों के लिए भी इसी तरह जगमगाता रहे.
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