The holy festival of Nag Panchami: नागलोक के रहस्यमयी संसार और कालसर्प दोष से मुक्ति

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News India Live, Digital Desk: The holy festival of Nag Panchami:  हिंदू धर्म में नागपंचमी का पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, जो श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग देवता के सम्मान में मनाया जाता है. इस दिन सर्पों को दूध से स्नान कराकर उनकी पूजा की जाती है, जिसका मुख्य उद्देश्य नाग देवता की कृपा प्राप्त करना, सर्प भय से मुक्ति पाना, और कालसर्प दोष जैसी बाधाओं को दूर करना होता है. नागपंचमी का त्योहार सिर्फ सांपों की पूजा का नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति में नागों के गहरे आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक महत्व को भी दर्शाता है.

भारत की प्राचीन संस्कृति में नागों को केवल जीव नहीं, बल्कि एक रहस्यमयी शक्ति, दिव्य ऊर्जा और संरक्षक के रूप में देखा गया है. विभिन्न पुराणों और महाकाव्यों जैसे महाभारत, रामायण, विष्णु पुराण, गरुड़ पुराण और भागवत पुराण में नागलोक का विस्तृत वर्णन मिलता है यह एक ऐसा रहस्यमय स्थान है जिसे धरती के नीचे, सात पाताल लोकों में से एक बताया गया है, जिसे 'नागलोक' या 'पाताल' भी कहा जाता है. मान्यता है कि यह लोक सूर्य की किरणों से नहीं, बल्कि अपने रत्नों और चमत्कारी आभा से प्रकाशित रहता है, जो इसके असाधारण वैभव को दर्शाता है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, नागवंश की उत्पत्ति महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से हुई थी, जिन्होंने अनगिनत नागों को जन्म दिया. इनमें शेषनाग (अनंत), वासुकी, तक्षक, कुलिक, कर्कोटक और पद्म जैसे प्रमुख नाग शामिल हैं. शेषनाग को सभी नागों में श्रेष्ठ और सबसे शक्तिशाली माना जाता है, जो भगवान विष्णु की शैय्या और संपूर्ण पृथ्वी के आधार माने जाते हैं. वासुकी, जिन्हें नागों का राजा भी कहा जाता है, भगवान शिव के गले में सुशोभित रहते हैं, जो उनकी गहन भक्ति को दर्शाता है. नागों से जुड़े अनेक प्रसिद्ध किस्से जैसे राजा परीक्षित को तक्षक द्वारा डसना और जनमेजय का सर्प-सत्र, नागों के पौराणिक महत्व को रेखांकित करते हैं.

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से, नागपंचमी का दिन कालसर्प दोष के निवारण के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है, जिससे जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं.कई स्थानों पर नागों से जुड़े विशेष मंदिर और स्थल भी हैं, जैसे काशी का नागकूप मंदिर, जिसे नागलोक का प्रवेश द्वार माना जाता है. सतपुड़ा के जंगलों में भी नागलोक जाने के रहस्यमय रास्ते की बात की जाती है, जहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु नागदेव की उपासना करने पहुंचते हैं. योग और तंत्र शास्त्र में नाग कुण्डलिनी शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं, जो रीढ़ में सुप्त अवस्था में स्थित होती है और जागृत होने पर आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है.

इन पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के माध्यम से भारत की संस्कृति ने सदियों से प्रकृति और जीवों के प्रति सम्मान की भावना को जीवित रखा है.

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