TET की अनिवार्यता बनी गले की फांस, शिक्षक बोले - "पहले नौकरी तो पक्की करो!"
देश भर के सरकारी और निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले लाखों शिक्षकों के बीच इन दिनों एक मुद्दा गरमाया हुआ है - और वो है TET यानी शिक्षक पात्रता परीक्षा को पास करने की अनिवार्यता। सरकार का कहना है कि अच्छी शिक्षा के लिए टीचर का योग्य होना जरूरी है और TET इसी योग्यता को मापने का एक पैमाना है।
लेकिन दूसरी तरफ, शिक्षक संघों और उन टीचरों का एक बहुत बड़ा वर्ग है, जो इस नियम को लेकर न सिर्फ परेशान हैं, बल्कि इसे अपने साथ नाइंसाफी मान रहे हैं।
तो आखिर शिक्षकों की नाराज़गी की वजह क्या है?
शिक्षक यूनियनों का तर्क बहुत सीधा है। उनका कहना है कि आज देश में लाखों की संख्या में शिक्षक कॉन्ट्रैक्ट पर, गेस्ट टीचर के तौर पर या बहुत ही कम सैलरी पर पढ़ा रहे हैं। इनकी नौकरी आज है, कल रहेगी या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं होती।
ऐसे में, सरकार पहले उनकी नौकरी की सुरक्षा (Job Security) सुनिश्चित क्यों नहीं करती? शिक्षकों का कहना है:
- पहले नौकरी पक्की करो: "आप पहले हमारी नौकरी तो पक्की कीजिए, हमें अच्छा वेतन दीजिए, उसके बाद योग्यता की बात करिए। जब भविष्य ही सुरक्षित नहीं, तो हर साल परीक्षा देने का क्या मतलब?"
- सालों का अनुभव भी कुछ मायने रखता है: कई शिक्षक सालों से, 10-15 साल से भी ज्यादा समय से पढ़ा रहे हैं। उनका सवाल है कि क्या उनका इतने सालों का तजुर्बा और मेहनत, एक 3 घंटे की परीक्षा से कम है? उनका मानना है कि सरकार को अनुभव को भी अहमियत देनी चाहिए।
- नियमों में बदलाव की मांग: शिक्षक संघ सरकार से मांग कर रहे हैं कि जो शिक्षक पहले से पढ़ा रहे हैं, उन्हें TET की अनिवार्यता से छूट दी जाए या उनके लिए नियमों में कोई रियायत दी जाए। उनका कहना है कि नए भर्ती होने वाले शिक्षकों पर यह नियम लागू हो, इससे उन्हें कोई ऐतराज नहीं है।
सरकार और शिक्षक आमने-सामने
यह मामला अब सिर्फ एक नियम का नहीं, बल्कि शिक्षकों के सम्मान और भविष्य का बन गया है। एक तरफ सरकार शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर सख्त है, तो दूसरी तरफ शिक्षक अपनी नौकरी और सालों की मेहनत की दुहाई दे रहे हैं।
यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार शिक्षकों की इन मांगों पर क्या रुख अपनाती है, क्योंकि इस एक फैसले पर देश के लाखों शिक्षकों और करोड़ों बच्चों की शिक्षा का भविष्य टिका हुआ है।
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