Surya vs Shani : आखिर क्यों अपने ही पिता को काला पड़ने पर मजबूर कर दिया शनिदेव ने? जानिए पौराणिक सच

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News India Live, Digital Desk : ज्योतिष की दुनिया में या फिर आम बातचीत में आपने अक्सर सुना होगा कि अगर किसी की कुंडली में सूर्य और शनि का सामना हो जाए, तो ज़िंदगी में उथल-पुथल मच जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों है? आखिर एक पिता (सूर्य) और बेटे (शनि) के बीच इतनी गहरी दुश्मनी कैसे हो गई कि देवता भी घबरा गए?

यह कहानी सिर्फ गुस्से की नहीं, बल्कि एक 'मां के अपमान' और 'रंग-भेद' की है। आइए, आपको बहुत आसान शब्दों में सुनाते हैं यह पौराणिक किस्सा।

संजना का डर और 'छाया' का जन्म

कहानी की शुरुआत होती है सूर्य देव की शादी से। उनका विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री 'संजना' से हुआ था। सूर्य देव का तेज और उनकी गर्मी इतनी ज्यादा थी कि संजना उसे बर्दाश्त नहीं कर पा रही थीं। आखिरकार, तंग आकर उन्होंने एक रास्ता निकाला। उन्होंने अपनी योग शक्ति से अपनी ही एक परछाई बनाई जिसे नाम दिया—'छाया'

संजना ने छाया को अपनी जगह सूर्य देव की सेवा में छोड़ दिया और खुद तपस्या करने चली गईं। सूर्य देव को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उनके साथ पत्नी नहीं, बल्कि उसकी परछाई रह रही है।

शनि का जन्म और वो "काला" सच

समय बीता और छाया गर्भवती हुईं। चूँकि छाया भगवान शिव की बड़ी भक्त थीं, तो वह गर्भावस्था के दौरान भी कड़ी धूप में खड़ी होकर तपस्या करती रहीं। इसका असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ा। जब शनि देव का जन्म हुआ, तो उनका रंग बेहद काला और शरीर बहुत कमजोर था।

पिता का ताना और बेटे का गुस्सा

यही वो पल था जिसने रिश्ते में दरार डाल दी। जब सूर्य देव ने अपने नवजात बेटे को देखा, तो वो भड़क गए। उन्होंने अपनी ही पत्नी (जो असल में छाया थी) के चरित्र पर शक कर लिया। उन्होंने कहा, "मेरा बेटा इतना काला और कुरूप कैसे हो सकता है? मैं तो साक्षात् प्रकाश हूँ। यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता।"

जरा सोचिए, एक बेटे के सामने उसके पिता ने उसे अपनाने से मना कर दिया और उसकी मां को अपमानित किया। नन्हे शनि देव यह बर्दाश्त नहीं कर सके।

जब शनि ने फेरी पिता पर नज़र

कहते हैं शनि देव को जन्म से ही कर्मफल दाता की शक्तियां मिली थीं। पिता के मुंह से मां का अपमान सुनकर शनि देव को क्रोध आ गया और उन्होंने गुस्से में सूर्य देव की तरफ घूर कर देखा। इसे ही शनि की "वक्र दृष्टि" या टेढ़ी नज़र कहा जाता है।

जैसे ही शनि की नज़र पिता पर पड़ी, सूर्य देव का शरीर, जो हमेशा सोने जैसा चमकता था, एकदम काला पड़ गया। उनकी सारी चमक गायब हो गई और उन्हें कुष्ठ रोग हो गया। त्राहि-त्राहि मच गई। सूर्य देव को समझ आ गया कि उनसे बहुत बड़ी भूल हुई है।

फिर कैसे शांत हुआ मामला?

बाद में भगवान शिव ने हस्तक्षेप किया और सूर्य देव को अपनी गलती का अहसास कराया। सूर्य देव ने अपनी गलती मानी, तब जाकर उन्हें उनका पुराना रूप वापस मिला। उन्होंने शनि को अपना बेटा स्वीकार तो कर लिया, लेकिन मन की वो खटास कभी पूरी तरह नहीं मिटी।

यही वजह है कि आज भी ज्योतिष शास्त्र में सूर्य और शनि को एक-दूसरे का शत्रु माना जाता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे इंसान हो या देवता, अहंकार और क्रोध रिश्तों को हमेशा के लिए जलाकर राख कर सकते हैं।

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