ट्रंप के 25% अतिरिक्त टैरिफ पर शशि थरूर का जोरदार पलटवार: खोली अमेरिका की पोल

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाने के फैसले ने दुनियाभर में हलचल मचा दी है। इस निर्णय के बाद भारत पर कुल 50 प्रतिशत टैरिफ लागू हो गया है, जो अमेरिका द्वारा किसी भी देश पर लगाया गया अब तक का सबसे ऊंचा टैरिफ है। इस विवादास्पद कदम पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिका के दोगलेपन को बेनकाब किया है और भारत से जवाबी कार्रवाई की मांग की है।

ट्रंप का टैरिफ फैसला: रूसी तेल आयात का बहाना

ट्रंप प्रशासन ने इस अतिरिक्त टैरिफ का आधार भारत द्वारा रूसी तेल की निरंतर खरीद को बताया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि भारत "प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रूसी संघ से तेल आयात कर रहा है" और यह अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। यह नया टैरिफ 21 दिन बाद यानी 27 अगस्त 2025 से प्रभावी होगा।

भारत अब ब्राजील के साथ उन देशों की श्रेणी में आ गया है जिन पर अमेरिका ने 50 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाया है। इससे भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्धा में गंभीर बाधा आने की संभावना है, क्योंकि वियतनाम, बांग्लादेश और अन्य एशियाई देशों पर कम टैरिफ लगा है।

शशि थरूर का मुंहतोड़ जवाब

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने इस टैरिफ की कड़ी निंदा करते हुए भारत सरकार से जवाबी कार्रवाई की मांग की है। थरूर ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "अगर वे हम पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, तो जिस दिन वे ऐसा करेंगे, अमेरिकी सामान पर हमारा मौजूदा टैरिफ, जो औसतन केवल 17 प्रतिशत है, वह भी बढ़कर 50 प्रतिशत हो जाना चाहिए"

तिरुवनंतपुरम के सांसद ने अमेरिकी दोहरे मानदंडों पर सवाल उठाते हुए कहा, "हम भी अमेरिकी सामान पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाना चाहिए। हमें उनसे पूछना चाहिए - क्या वे हमारे रिश्ते को महत्व नहीं देते? अगर भारत उनके लिए मायने नहीं रखता, तो वे भी हमारे लिए मायने नहीं रखने चाहिए"

अमेरिकी दोगलेपन का पर्दाफाश

थरूर ने अमेरिका के दोहरे रवैये को उजागर करते हुए कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया कि "चीन भारत से लगभग दोगुना रूसी तेल खरीद रहा है, लेकिन उन्हें 90 दिन की छूट मिली है जबकि भारत को केवल तीन सप्ताह का समय दिया गया है। वाशिंगटन की तरफ से कोई और छुपा हुआ संदेश लग रहा है"

इसके अलावा, थरूर ने अमेरिका की रूस के साथ चल रहे व्यापार की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा, "अमेरिका खुद यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, पैलेडियम और रूसियों से विभिन्न सामग्री खरीदता है"। यह तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका का पैसा यूक्रेन के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होगा तो भारत का पैसा क्यों होगा।

व्यापारिक प्रभाव और चुनौतियां

इस टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ने की संभावना है। थरूर ने चेतावनी दी है कि "इसका प्रभाव होगा क्योंकि हमारा उनके साथ लगभग 90 अरब डॉलर का व्यापार है। अगर चीजें 50 प्रतिशत महंगी हो जाएंगी तो लोग खरीदने से पहले सोचेंगे"

भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्र जैसे वस्त्र, रत्न और आभूषण, ऑटोमोबाइल पार्ट्स, और समुद्री भोजन पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह टैरिफ भारत के अमेरिकी निर्यात को 40-50 प्रतिशत तक घटा सकता है।

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है, जहां 2024-25 में लगभग 87 अरब डॉलर का सामान भेजा गया। यह भारत के कुल निर्यात का लगभग 20 प्रतिशत है, जिससे इस टैरिफ का प्रभाव व्यापक होगा।

भारत की रणनीतिक स्थिति

थरूर ने सुझाव दिया है कि भारत को अपने व्यापारिक भागीदारों में विविधता लानी चाहिए। उन्होंने कहा, "हमें यूके और यूरोपीय संघ जैसे अन्य बाजारों के साथ जुड़ना चाहिए। हमारे पास कई देशों के साथ अच्छे संबंध हैं"

भारत सरकार ने इस टैरिफ को "अनुचित, अन्यायपूर्ण और अनुचित" करार देते हुए कहा है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि भारत का तेल आयात बाजार की ताकतों पर आधारित है और 1.4 अरब भारतीयों की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया जाता है।

वैश्विक तेल व्यापार की वास्तविकता

आंकड़े दिखाते हैं कि यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत के बाद से यूरोपीय संघ के देशों ने रूस की जीवाश्म ईंधन निर्यात आय का 23 प्रतिशत हिस्सा लिया है, जबकि भारत का हिस्सा केवल 13 प्रतिशत है। चीन रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार है, जो 2024 में 62.6 अरब डॉलर का तेल आयात करता है, जबकि भारत ने 52.7 अरब डॉलर का आयात किया है।

फिनलैंड स्थित CREA (Centre for Research on Energy and Clean Air) के अनुसार, G7+ देशों के टैंकर वर्तमान में रूसी तेल परिवहन का आधे से अधिक हिस्सा संभालते हैं। यह पश्चिमी देशों के दोहरे मानदंडों को उजागर करता है।

राजनीतिक और कूटनीतिक निहितार्थ

यह टैरिफ युद्ध भारत-अमेरिका संबंधों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह दो दशकों की कूटनीतिक प्रगति को नुकसान पहुंचा सकता है। कार्नेगी एंडाउमेंट के एशले टेलिस के अनुसार, "भारत अब एक जाल में फंस गया है: ट्रंप के दबाव के कारण, मोदी रूस से भारत की तेल खरीदारी को कम करेंगे, लेकिन वह सार्वजनिक रूप से ऐसा स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि इससे ऐसा लगेगा कि वे ट्रंप की ब्लैकमेल के सामने झुक गए हैं"

विपक्षी नेता राहुल गांधी ने इसे "आर्थिक ब्लैकमेल" करार देते हुए कहा है कि "ट्रंप का 50% टैरिफ आर्थिक ब्लैकमेल है - भारत को एक अनुचित व्यापार समझौते में धकेलने का प्रयास है"

आर्थिक विश्लेषण और भविष्य की संभावनाएं

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह टैरिफ भारत की GDP में 0.3-0.4 प्रतिशत की गिरावट ला सकता है। Goldman Sachs का अनुमान है कि 50 प्रतिशत टैरिफ भारत की GDP को 0.6 प्रतिशत कम कर सकता है।

हालांकि, थरूर ने आशा व्यक्त की है कि "21 दिन की समय सीमा में हमारे वार्ताकारों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि यह कितना अनुचित है"। उन्होंने कहा कि यदि अमेरिका अपना रवैया नहीं बदलता तो भारत को वैकल्पिक बाजारों की तलाश करनी चाहिए और जवाबी टैरिफ लगाना चाहिए।

 

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