शर्मिला टैगोर और धर्मेंद्र: वो जोड़ी जिसने सिखाया कि परदे पर सच्चा रोमांस कैसा होता है

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News India Live, Digital Desk : आज बॉलीवुड की सबसे ग्रेसफुल और खूबसूरत अभिनेत्री शर्मिला टैगोर जी का जन्मदिन है (8 दिसंबर)। जब भी उनके करियर की बात होती है, तो राजेश खन्ना के साथ उनकी जोड़ी याद आती है, लेकिन सच कहूं तो एक और सुपरस्टार हैं जिनके साथ उनकी केमिस्ट्री ने जादुई इतिहास रचा हैजी हाँ, हम बात कर रहे हैं हमारे 'ही-मैन' धर्मेंद्र की।

आज के दौर में जहां जोड़ियां बदलती रहती हैं, उस पुराने दौर की बात ही कुछ और थी। शर्मिला जी की नज़ाकत और धर्मेंद्र पाजी का वो मासूम लेकिन दमदार अंदाज... जब भी ये दोनों साथ आए, बॉक्स ऑफिस पर कमाल हो गया। आइये, आज उनकी कुछ ऐसी ही बेहतरीन फिल्मों के बहाने उस सुनहरे दौर में वापस चलते हैं।

सिर्फ रोमांस नहीं, हर जज्बात को जिया

इन दोनों की जोड़ी की खासियत यह थी कि ये सिर्फ पेड़ के इर्द-गिर्द नाचने तक सीमित नहीं थे।

  • हल्की-फुल्की कॉमेडी: कौन भूल सकता है फिल्म 'चुपके-चुपके' (Chupke Chupke)? वो ड्राइवर के भेष में धर्मेंद्र और बोटनी की स्टूडेंट बनीं शर्मिला। उस फिल्म की मासूमियत और हंसी आज भी तरोताज़ा लगती है।
  • गहरी खामोशी: अगर आपने फिल्म 'अनुपमा' (Anupama) देखी है, तो आप जानते होंगे कि बिना ज्यादा संवाद बोले भी आँखों से एक्टिंग कैसे की जाती है। इस फिल्म में दोनों ने बेहद संजीदा रोल निभाए थे, जो सीधे दिल में उतर जाते हैं।

क्लासिक फिल्मों का खज़ाना

इनकी जोड़ी ने हमें 'सत्यकाम' (Satyakam) जैसी फिल्म भी दी, जिसे ऋषिकेश मुखर्जी अपनी और धर्मेंद्र अपनी बेस्ट फिल्म मानते हैं। इसमें ग्लैमर नहीं, बल्कि सच्चाई और उसूलों की लड़ाई थी। वहीं, 'मेरे हमदम मेरे दोस्त' और 'देवर' जैसी फिल्मों ने दिखाया कि ये दोनों हर तरह के किरदार में कितने फिट बैठते थे।

गाने जो आज भी जुबां पर हैं

"अभ भी जिसका नशा है..." या "कुछ तो लोग कहेंगे..." जैसे गानों में इनका स्क्रीन प्रजेंस देखिए। एक तरफ शर्मिला जी की वो डिंपल वाली मुस्कान और दूसरी तरफ धर्मेंद्र की वो भोली सी सूरत। ये वो दौर था जब फिल्में परिवार के साथ बैठकर देखी जाती थीं और गानों के बोल रूह में उतर जाते थे।

क्यों खास है यह जोड़ी?

शर्मिला टैगोर मॉडर्न ख्यालात और ग्लैमर का प्रतीक थीं, जबकि धर्मेंद्र देसीपन और ज़मीन से जुड़े इंसान की पहचान। जब ये दोनों 'अपोजिट' एक साथ आते थे, तो परदे पर जो जादू बनता था, उसका मुकाबला आज की कोई जोड़ी नहीं कर सकती।

तो इस खास दिन पर, क्यों न अपनी भागदौड़ भरी ज़िंदगी से थोड़ा वक्त निकालकर 'चुपके-चुपके' या 'यकीन' जैसी कोई पुरानी क्लासिक फिल्म देखी जाए? यकीन मानिए, आपका दिन बन जाएगा!

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