RMCTA Threatens Protest : क्यों अचानक राजस्थान के 8 मेडिकल कॉलेजों के प्रिंसिपल देना चाहते हैं इस्तीफा? खुल गया अंदर का राज
News India Live, Digital Desk: राजस्थान के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में उस वक्त हड़कंप मच गया, जब सरकार ने एक नया आदेश जारी कर दिया। इस आदेश के अनुसार, अब अगर किसी सीनियर डॉक्टर को मेडिकल कॉलेज का प्रिंसिपल या नियंत्रक बनना है, तो उसे अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस पूरी तरह से बंद करनी होगी। सरकार के इस फैसले ने प्रदेश के सबसे अनुभवी और वरिष्ठ डॉक्टरों को नाराज कर दिया है और अब यह मामला सरकार और डॉक्टरों के बीच एक बड़ी लड़ाई का रूप लेता जा रहा है।
राजस्थान मेडिकल कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन (RMCTA) ने इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और सीधी चेतावनी दी है कि अगर यह "काला कानून" वापस नहीं लिया गया, तो प्रदेश भर में बड़ा आंदोलन होगा।
आखिर क्या है यह पूरा विवाद?
हाल ही में राजस्थान सरकार ने यह नियम बनाया है कि मेडिकल कॉलेजों के प्रिंसिपल और कंट्रोलर जैसे प्रशासनिक पदों पर बैठे डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं कर सकते। उन्हें बाकायदा एक शपथ पत्र देकर यह सुनिश्चित करना होगा कि वे किसी भी तरह की निजी प्रैक्टिस में शामिल नहीं हैं।
सरकार का कहना है कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि प्रिंसिपल अपना 100% समय और ध्यान कॉलेज और अस्पताल के प्रशासनिक कामों में लगा सकें, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता सुधरे।
डॉक्टरों को क्यों है इस फैसले से दिक्कत?
लेकिन प्रदेश के सीनियर डॉक्टर सरकार के इस तर्क से बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि यह फैसला पूरी तरह से गलत और अव्यावहारिक है। डॉक्टरों की नाराजगी की मुख्य वजहें ये हैं:
- "हम पहले डॉक्टर हैं, फिर मैनेजर": डॉक्टरों का कहना है कि उनकी असली पहचान मरीजों का इलाज करना है। अगर वे प्रैक्टिस ही छोड़ देंगे, तो उनकी क्लीनिकल स्किल यानी इलाज करने की क्षमता ही धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। वे मरीजों से कैसे जुड़े रहेंगे?
- इसे बताया 'अपमान': आरएमसीटीए के अध्यक्ष डॉ. धनंजय अग्रवाल का कहना है कि कोई भी डॉक्टर सालों की कड़ी मेहनत, अनुभव और प्रतिष्ठा के बाद प्रिंसिपल के पद तक पहुंचता है। उस पर इस तरह का प्रतिबंध लगाना एक तरह से उसका अपमान है।
- तो फिर कौन बनेगा प्रिंसिपल?: सबसे बड़ा और प्रैक्टिकल सवाल यही है कि इस नियम के बाद कोई भी सीनियर और काबिल प्रोफेसर प्रिंसिपल क्यों बनना चाहेगा? कोई भी सफल डॉक्टर अपनी दशकों की मेहनत से खड़ी की गई प्रैक्टिस को एक प्रशासनिक पद के लिए क्यों छोड़ेगा? इससे भविष्य में इन अहम पदों के लिए योग्य उम्मीदवार मिलना ही बंद हो जाएगा।
- आर्थिक पहलू भी एक वजह: यह भी एक सच्चाई है कि सरकारी वेतन के मुकाबले प्राइवेट प्रैक्टिस से डॉक्टरों को अच्छी आमदनी होती है, जो उनके इस विरोध का एक बड़ा कारण है।
अब आगे क्या?
डॉक्टरों के संगठन ने साफ कर दिया है कि वे इस फैसले को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही इस आदेश को वापस नहीं लिया गया, तो प्रदेश के सभी सरकारी डॉक्टर मिलकर एक बड़ा आंदोलन करेंगे, जिससे स्वास्थ्य सेवाएं भी प्रभावित हो सकती हैं।
यह मामला अब सिर्फ़ एक नियम का नहीं, बल्कि डॉक्टरों के सम्मान और भविष्य का भी सवाल बन गया है। अब देखना यह है कि सरकार अपने फ़ैसले पर अड़ी रहती है या डॉक्टरों के गुस्से के आगे झुक जाती है।
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