Rajasthan school case : शिक्षा के मंदिर में जल्लाद बने गुरु 11वीं के छात्र को प्रिंसिपल और 5 शिक्षकों ने बेरहमी से पीटा

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News India Live, Digital Desk : हम अपने बच्चों को स्कूल इस भरोसे भेजते हैं कि वहां उन्हें न केवल अच्छी शिक्षा मिलेगी, बल्कि उन्हें एक सुरक्षित माहौल भी मिलेगा। लेकिन जयपुर (Jaipur School Case) से आई एक ताज़ा खबर ने इस भरोसे को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया है। एक स्कूल में 11वीं कक्षा के छात्र के साथ जो हुआ, उसने मानवता और शिक्षक-शिष्य के पवित्र रिश्ते को शर्मसार कर दिया है।

सोचिए उस पिता का क्या हाल होगा, जिसने अपने लाडले को पढ़-लिखकर कुछ बनने के लिए भेजा था, लेकिन उसे अस्पताल के बिस्तर पर लथपथ देखना पड़ा। आरोप है कि स्कूल के प्रिंसिपल और 5 अन्य शिक्षकों ने मिलकर एक मासूम छात्र को इस कदर पीटा जैसे वो कोई अपराधी हो। पीड़ित छात्र के पिता की आँखें नम हैं और वो बस एक ही सवाल पूछ रहे हैं— "क्या मेरा बच्चा जानवर था? उसके साथ जानवरों जैसा सलूक क्यों किया गया?"

आखिर ऐसी कौन सी खता हो गई थी?
अक्सर छोटी-मोटी गलतियों पर टोकना या डांटना अनुशासन का हिस्सा माना जाता है, लेकिन सामूहिक रूप से मिलकर एक बच्चे को अधमरा कर देना क्रूरता की पराकाष्ठा है। छात्र के शरीर पर जो निशान हैं, वो चीख-चीख कर उस दहशत की गवाही दे रहे हैं जिसे उसने उन बंद कमरों के भीतर सहा होगा। प्रिंसिपल जैसे ज़िम्मेदार पद पर बैठा व्यक्ति और शिक्षकों की वो मंडली, जिन्हें बच्चे अपना मार्गदर्शक मानते हैं, अगर वे ही हिंसक हो जाएं तो समाज किस दिशा में जा रहा है?

पिता का दर्द और न्याय की गुहार
पिता ने पुलिस के पास अपनी शिकायत दर्ज कराते हुए रोते हुए बताया कि उसके बच्चे के आत्मसम्मान और शरीर, दोनों को तोड़ दिया गया है। छात्र अब इतना डर गया है कि वह स्कूल का नाम सुनकर ही कांपने लगता है। “जानवरों जैसा सुलूक” ये शब्द सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि एक डरे हुए पिता की चीख है, जो व्यवस्था से जवाब मांग रहा है। राजस्थान में 'कॉरपोरल पनिशमेंट' (Sarkaari vs Private School Corporal Punishment) को लेकर नियम तो सख्त हैं, लेकिन ये घटना बताती है कि ज़मीनी हकीकत आज भी कुछ अलग है।

हमें जागना होगा
यह सिर्फ एक बच्चे की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारे शिक्षा तंत्र के उन छेदों को दिखाती है जहाँ गुस्सा और हिंसा 'शिक्षण पद्धति' का हिस्सा बन गए हैं। पुलिस अब मामले की जांच कर रही है और उम्मीद है कि दोषियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई होगी कि कोई भी दोबारा किसी मासूम पर हाथ उठाने की हिम्मत न करे।

स्कूल बच्चों को संवारने की जगह होते हैं, उनके घाव कुरेदने की नहीं। आज ज़रूरत इस बात की है कि हर स्कूल और कोचिंग संस्थान में टीचर्स की काउंसिलिंग भी उतनी ही ज़रूरी की जाए, जितनी बच्चों की पढ़ाई। वरना, आज किसी और का बच्चा शिकार हुआ है, कल आपका भी हो सकता है।

साहब, ये आहत हुई पीढ़ी ही देश का भविष्य है, इन्हें डर के साये में नहीं, बल्कि प्यार के आँचल में पनपने का मौका दीजिए।

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