Puja Rituals : पूजा में कलश क्यों रखते हैं, जानिए कलश स्थापना का महत्व और नियम
- by Archana
- 2025-08-19 11:42:00
News India Live, Digital Desk: Puja Rituals : प्रत्येक शुभ अवसर पर पूजा या मांगलिक कार्यों की शुरुआत कलश स्थापना के साथ होती है. सनातन धर्म में कलश को शुभता, समृद्धि और दिव्य ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. यह भगवान गणेश, आदि शक्ति और नवग्रहों को भी आमंत्रित करने का माध्यम है. ऐसी मान्यता है कि कलश में ब्रह्मांड की सभी दिव्य शक्तियों का वास होता है, जो सकारात्मक ऊर्जा फैलाकर नकारात्मक प्रभावों को दूर करता है.
कलश स्थापना का महत्व और लाभ:
ईश्वरीय उपस्थिति: शास्त्रों के अनुसार, कलश को ब्रह्मांड के लघु रूप और देवताओं का निवास स्थान माना जाता है. कलश के मुख में भगवान विष्णु, कंठ में शिव, और जड़ में ब्रह्माजी निवास करते हैं. यह स्थापित होने से वातावरण में दैवीय उपस्थिति का अनुभव होता है.
सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह: कलश के अंदर पानी, अक्षत और आम के पत्तों जैसे तत्वों का संयोजन एक पवित्र वातावरण बनाता है, जो सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करता है. यह घर में सुख, शांति और समृद्धि लाता है.
ग्रहों की शांति: कलश स्थापना से नवग्रहों को शांत करने में भी मदद मिलती है. यह ग्रह दोषों के नकारात्मक प्रभावों को कम करता है और व्यक्ति के जीवन में संतुलन लाता है.
प्रार्थनाओं की सफलता: कलश स्थापना के बाद की गई पूजा-पाठ और प्रार्थनाएं अधिक फलदायी मानी जाती हैं. ऐसा माना जाता है कि कलश इन प्रार्थनाओं को ईश्वरीय शक्तियों तक पहुँचाता है, जिससे वे जल्द ही पूरी होती हैं.
कलश स्थापना के नियम और विधि:
सही दिशा: कलश की स्थापना हमेशा उत्तर-पूर्व दिशा में करनी चाहिए, क्योंकि यह दिशा देवताओं के लिए शुभ मानी जाती है.
शुद्ध स्थान: कलश स्थापना के लिए जगह को गंगाजल से पवित्र करना चाहिए और रंगोली या चौकी पर उसे रखना चाहिए.
आवश्यक सामग्री: कलश में साफ जल भरकर उसमें सिक्का, सुपारी, दूर्वा, हल्दी गांठ और चावल डालें. कलश के ऊपर आम या अशोक के पत्ते रखें.
श्रीफल (नारियल): एक श्रीफल (नारियल) को लाल कपड़े में लपेटकर उस पर मौली (कलावा) बांधकर कलश के मुख पर स्थापित करें. नारियल को स्वास्तिक चिह्न के साथ स्थापित करने से और शुभ फल मिलते हैं.
पूर्ण विधि: स्थापना के बाद, पूरे विधि-विधान से देवी-देवताओं का आवाहन करें और मंत्रोच्चार के साथ पूजा करें. कलश पर रोली-कुमकुम का तिलक करें और फूल चढ़ाएं.
कलश की यह पवित्र परंपरा केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मकता, पवित्रता और दैवीय कृपा को आमंत्रित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है. यह पूजा को और अधिक शक्तिशाली और सफल बनाता है.
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