Pitru Paksha 2025 : क्या है पंचबलि श्राद्ध? इसके बिना पितरों तक नहीं पहुंचता आपका भोग
News India Live, Digital Desk: पितृ पक्ष का समय हमारे पूर्वजों को याद करने और उनके प्रति अपना सम्मान जताने का होता है. इन दिनों में हम श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसी कई रस्में निभाते हैं, ताकि हमारे पितरों की आत्मा को शांति मिले. हम अक्सर सोचते हैं कि केवल ब्राह्मणों को भोजन कराने से ही श्राद्ध का कर्म पूरा हो जाता है, लेकिन शास्त्रों के अनुसार एक बहुत ज़रूरी रस्म है जिसके बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है. इस रस्म को 'पंचबलि' कहते हैं.
आखिर क्या है यह 'पंचबलि'?
'पंचबलि' का मतलब है पांच जीवों के लिए भोजन का अंश निकालना. मान्यता है कि श्राद्ध के दिन हमारे पितर किसी भी रूप में हमारे द्वार पर आ सकते हैं. इसलिए, जो भी भोजन पितरों के लिए बनाया जाता है, उसे परिवार के खाने से पहले इन पांच जीवों को अर्पित किया जाता है. माना जाता है कि ऐसा करने से पितर तृप्त होते हैं और परिवार को अपना आशीर्वाद देते हैं. अगर यह रस्म पूरी न की जाए, तो श्राद्ध का पुण्य फल नहीं मिलता.
इन पांच जीवों के लिए निकाला जाता है भोजन:
श्राद्ध के भोजन में से पांच अलग-अलग हिस्सों को पत्ते पर निकाला जाता है.
- गौ-बलि (गाय के लिए): पहला हिस्सा गाय को दिया जाता है. हिंदू धर्म में गाय को पूजनीय और पवित्र माना गया है. गाय को भोजन कराने से सभी देवी-देवताओं तक हमारा भोग पहुंचता है.
- श्वान-बलि (कुत्ते के लिए): दूसरा हिस्सा कुत्ते को दिया जाता है. कुत्ते को यम का दूत माना जाता है और यह हमारे आस-पास की नकारात्मक शक्तियों से हमारी रक्षा करता है.
- काक-बलि (कौवे के लिए): तीसरा हिस्सा कौवे के लिए छत पर रखा जाता है. कौवे को पितरों का रूप माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि अगर कौवा आपका दिया हुआ भोजन ग्रहण कर ले, तो इसका मतलब है कि आपके पितर आपसे प्रसन्न और तृप्त हैं.
- देव-बलि (देवताओं के लिए): चौथा हिस्सा देवताओं के नाम पर अग्नि में अर्पित कर दिया जाता है. अगर आप ऐसा नहीं कर सकते, तो इसे किसी मंदिर में भी रख सकते हैं.
- पिपीलिका-बलि (चींटियों के लिए): पांचवां और आखिरी हिस्सा चींटियों और अन्य छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़ों के लिए उनकी बिल के पास रख दिया जाता है. यह दिखाता है कि हम छोटे से छोटे जीव के प्रति भी आभार व्यक्त करते हैं.
पंचबलि की यह रस्म सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि प्रकृति और हर जीव के प्रति हमारे सम्मान और आभार का प्रतीक है. इस सरल से कर्म को करने से न सिर्फ हमारे पितरों को शांति मिलती है, बल्कि परिवार में भी सुख, शांति और समृद्धि आती है.
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