Pitru Paksha 2025 : जानिए पहले श्राद्ध की तारीख और घर पर श्राद्ध करने की सरल विधि

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News India Live, Digital Desk: पितरों को समर्पित 16 दिनों का महालय, यानी पितृ पक्ष, इस साल 18 सितंबर से शुरू हो रहा है. यह समय हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने का होता है. पितृ पक्ष का पहला दिन प्रतिपदा श्राद्ध होता है, जिसे 'पड़वा श्राद्ध' भी कहते हैं.

कब है प्रतिपदा श्राद्ध? (तारीख और शुभ मुहूर्त)

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि 18 सितंबर, 2025 को है. इसलिए पहला श्राद्ध इसी दिन किया जाएगा. श्राद्ध करने के लिए सबसे उत्तम समय कुतुप मुहूर्त, रौहिण मुहूर्त या अपराह्न काल (दोपहर का समय) माना जाता है.

  • कुतुप मुहूर्त: सुबह 11:56 AM से दोपहर 12:44 PM
  • रौहिण मुहूर्त: दोपहर 12:44 PM से 01:33 PM
  • अपराह्न काल: दोपहर 01:33 PM से 03:59 PM

किनका किया जाता है प्रतिपदा श्राद्ध?

प्रतिपदा तिथि पर उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका निधन शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ हो. इसके अलावा, नाना-नानी के परिवार में यदि श्राद्ध करने वाला कोई पुरुष सदस्य नहीं है और उनकी मृत्यु की तिथि भी ज्ञात नहीं है, तो उनका श्राद्ध भी इसी दिन किया जाता है.

घर पर श्राद्ध करने की सरल विधि:

अगर आप किसी पंडित को नहीं बुला पा रहे हैं, तो भी आप घर पर बहुत ही सरल विधि से अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं.

  1. सुबह की तैयारी: श्राद्ध के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े पहनें. बिना प्याज-लहसुन का सात्विक भोजन (जैसे खीर, पूड़ी, सब्जी) तैयार करें.
  2. तर्पण करें: दोपहर के समय, दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठें. एक बर्तन में जल, थोड़े काले तिल, जौ और कुशा (एक प्रकार की घास) मिलाएं. अब अपने पितरों का ध्यान करते हुए उस जल को अपने अंगूठे से धीरे-धीरे किसी दूसरे पात्र में गिराएं. यह तर्पण कहलाता है.
  3. पिंडदान करें: जौ या चावल के आटे को गूंथकर एक गोला बनाएं, जिसे पिंड कहते हैं. इस पिंड को पितरों को अर्पित करें.
  4. पंचबलि भोग लगाएं: बनाए गए भोजन में से पांच अलग-अलग हिस्सों को एक पत्ते पर निकालें. ये पांच हिस्से गाय, कुत्ते, कौवे, देवता (अग्नि में अर्पित करें) और चींटी के लिए होते हैं. इसे 'पंचबलि' कहा जाता है.
  5. ब्राह्मण को भोजन कराएं: इसके बाद, किसी ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद व्यक्ति को आदरपूर्वक भोजन कराएं और अपनी क्षमता के अनुसार दान-दक्षिणा देकर विदा करें.

अगर ब्राह्मण या कोई जरूरतमंद व्यक्ति न मिल सके, तो आप भोजन का एक हिस्सा निकालकर गाय को खिला सकते हैं. श्रद्धा और सच्चे मन से किया गया यह सरल कर्म भी पितरों को तृप्ति और शांति प्रदान करता है.

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