निशिकांत दुबे vs झारखंड पुलिस हाईवोल्टेज ड्रामा का अंत जानिए कोर्ट ने क्यों दी बीजेपी नेता को क्लीन चिट?

Post

News India Live, Digital Desk : राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप तो चलते रहते हैं, लेकिन जब मामला कोर्ट-कचहरी और एफआईआर (FIR) तक पहुँच जाए, तो नेता जी की टेंशन बढ़ना लाजिमी है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे (Nishikant Dubey) पिछले काफी समय से एक मामले को लेकर चर्चा में थे आरोप था कथित गौ-तस्कर (Alleged Cow Smuggler) के साथ मारपीट करने का।

लेकिन अब, झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) ने इस मामले में निशिकांत दुबे को बहुत बड़ी राहत दे दी है। चलिए समझते हैं कि पूरा माजरा क्या था और कोर्ट ने क्या कहा।

क्या था पूरा मामला? (The Background)

यह मामला मोहनपुर थाने में दर्ज एक एफआईआर से जुड़ा है। आरोप लगाया गया था कि निशिकांत दुबे और उनके समर्थकों ने एक व्यक्ति के साथ मारपीट की थी, जिसे कथित तौर पर गौ-तस्कर बताया जा रहा था। पुलिस ने इस मामले में आईपीसी की कई गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज किया था।
विरोधियों ने इसे खूब तूल दिया। कहा गया कि कानून हाथ में लिया गया है। वहीं, निशिकांत दुबे शुरुआत से ही इसे "राजनीतिक द्वेष" (Political Vendetta) और उन्हें परेशान करने की साजिश बता रहे थे। उनका कहना था कि पुलिस प्रशासन का इस्तेमाल उन्हें टारगेट करने के लिए किया जा रहा है।

कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?

निशिकांत दुबे ने इस एफआईआर (FIR) को रद्द करवाने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अदालत में सुनवाई हुई, दलीलें दी गईं। और अब, अदालत ने माना है कि पुलिस की कार्रवाई में झोल है।
ताजा जानकारी के मुताबिक, झारखंड हाईकोर्ट ने उस एफआईआर और पूरी क्रिमिनल कार्यवाही (Criminal Proceedings) को ही निरस्त (Quash) कर दिया है।

साधारण भाषा में समझें तो, कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में निशिकांत दुबे के खिलाफ कोई केस नहीं बनता। यह फैसला दुबे के लिए किसी "संजीवनी बूटी" से कम नहीं है।

फैसले के मायने क्या हैं?

यह फैसला सिर्फ एक कानूनी राहत नहीं है, बल्कि एक "सियासी जीत" भी है। निशिकांत दुबे अक्सर आरोप लगाते रहे हैं कि राज्य सरकार उन्हें झूठे केसों में फंसा रही है। कोर्ट के इस फैसले से उनके इन आरोपों को बल मिला है। अब वो और ज्यादा आक्रामक होकर जनता के बीच जा सकेंगे।

सोशल मीडिया पर उनके समर्थक इसे "सत्यमेव जयते" बता रहे हैं। उनका कहना है कि सच परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं। खैर, कोर्ट के फैसले के बाद निशिकांत दुबे ने राहत की सांस ली होगी, क्योंकि अब एक और पुराना मामला फाइल में बंद हो गया है।

आपको क्या लगता है, क्या नेताओं पर दर्ज होने वाले ऐसे मामले वाकई बदले की राजनीति होते हैं? अपनी राय जरूर रखें

 

--Advertisement--