Mythology Unlocked : हनुमान जी ने जानबूझकर क्यों रोका था बलराम जी का रास्ता? अहंकार टूटने की सबसे रोमांचक कहानी।

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News India Live, Digital Desk : ताकत होना अच्छी बात है, लेकिन ताकत का 'घमंड' होना—यह विनाश की निशानी है। यह बात हम और आप तो जानते ही हैं, लेकिन द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई और शेषनाग के अवतार माने जाने वाले बलराम जी (Balarama Ji) एक बार यह बात भूल गए थे।

उनके पास उनका शक्तिशाली अस्त्र 'हल' (Hal) था और बाहुबल इतना कि वे अकेले पहाड़ों को हिला दें। धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि पूरी दुनिया में उनसे ज्यादा ताकतवर कोई योद्धा नहीं है। उनका यही भ्रम तोड़ने के लिए खुद प्रभु श्री कृष्ण को एक लीला रचनी पड़ी, जिसमें उन्होंने बुलाया अपने सबसे खास भक्त पवनपुत्र हनुमान (Lord Hanuman) को।

आइए, बड़े ही आसान और रोचक अंदाज में जानते हैं कि आखिर उस दिन बगीचे में क्या हुआ था जब एक "बूढ़े बंदर" ने बलराम जी के पसीने छुड़ा दिए थे।

श्री कृष्ण ने क्यों रचा यह ड्रामा?

हुआ यूं कि एक बार बलराम जी अपनी ताकत की बहुत डींगे हांक रहे थे। श्री कृष्ण समझ गए कि "दाऊ भैया" के सिर पर अहंकार चढ़ गया है और इसे उतारना जरूरी है, वरना यह उनके पतन का कारण बन जाएगा।

कृष्ण जी ने चुपके से हनुमान जी को याद किया और उन्हें एक खास बगीचे में जाकर विश्राम करने को कहा। उधर, उन्होंने बलराम जी को किसी बहाने से उसी बगीचे की तरफ भेज दिया।

रास्ते का रोड़ा: एक "बूढ़ा वानर"

बलराम जी बड़े शान से, अपना हल कंधे पर रखे बगीचे में टहल रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि रास्ते के बीचो-बीच एक बेहद कमजोर और बूढ़ा वानर लेटा हुआ है। उसकी पूंछ (Tail) इतनी लंबी थी कि उसने पूरा रास्ता घेर रखा था।

यह देखकर बलराम जी को गुस्सा आ गया। उन्होंने कड़कती आवाज़ में कहा, "ऐ वानर! तुम्हें दिखाई नहीं देता? रस्ते से हट जाओ, मुझे जाना है।"

उस बूढ़े वानर (जो असल में हनुमान जी थे) ने धीरे से आंख खोली और बड़ी विनम्रता से कहा, "महात्मा, मैं बहुत बूढ़ा और कमजोर हूँ। शरीर में उठने की भी ताकत नहीं है। आप कृपा करके साइड से निकल जाइए या मेरी पूंछ हटाकर रास्ता बना लीजिये।"

ताकत बनाम भक्ति: असली मुकाबला

बलराम जी को यह बात अपनी तौहीन लगी। उन्होंने सोचा, "यह मामूली बंदर मुझे पूंछ हटाने को कह रहा है?" उन्होंने अपने बाएं हाथ से पूंछ को पकड़कर फेंकने की कोशिश की।

लेकिन यह क्या! पूंछ तो अपनी जगह से हिली भी नहीं।

बलराम जी को झटका लगा। उन्होंने अब दोनों हाथों का जोर लगाया। चेहरा लाल हो गया, पसीने छूट गए, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। बात अब इज़्ज़त पर आ गई थी। बलराम जी ने अपना महाशक्तिशाली 'हल' निकाला और उससे पूंछ को उठाने की कोशिश की। ऐसा लगा जैसे पूंछ कोई पर्वत हो जो ज़मीन से चिपका हुआ है।

बलराम जी हांफने लगे। उनका सारा बल, सारा अहंकार पसीने के रूप में बह गया। वे समझ गए कि यह कोई साधारण वानर नहीं हो सकता।

अहंकार का अंत और माफी

थक-हारकर बलराम जी ने हाथ जोड़ लिए और पूछा, "वानर श्रेष्ठ! आप कौन हैं? मेरी सारी शक्ति लगाने के बाद भी मैं आपकी एक पूंछ नहीं हिला पाया। मुझे क्षमा करें, मेरा अहंकार टूट चुका है।"

तभी वहां श्री राम का नाम गूंजा और हनुमान जी अपने असली विशाल रूप में प्रकट हुए। बलराम जी की आंखें फटी की फटी रह गईं। उन्होंने हनुमान जी के चरण स्पर्श किए। हनुमान जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि यह सब तो प्रभु की लीला थी।

सीख (Moral of the Story)

यह कथा हमें बहुत प्यारी सीख देती है। आप कितने भी बड़े, अमीर या ताकतवर क्यों न हो जाएं, विनम्रता (Humility) कभी नहीं छोड़नी चाहिए। अहंकार उस गुब्बारे की तरह है जो थोड़ी सी हवा (पूंछ का भार) मिलते ही फूट जाता है।

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