Mythological Stories : जब शनिदेव को हुआ अपनी शक्ति पर घमंड, तो हनुमानजी ने सिखाया ऐसा सबक कि मांगनी पड़ी माफी
News India Live, Digital Desk: हम सबने हनुमान जी की वीरता और श्री राम के प्रति उनकी अटूट भक्ति की कई कहानियाँ सुनी हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक बार उनका सामना न्याय के देवता शनिदेव से भी हुआ था? यह कोई साधारण मुलाकात नहीं थी, बल्कि एक ऐसी घटना थी जिसने शनिदेव को अपनी शक्तियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया. आज हम आपको वही पौराणिक कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो अहंकार पर भक्ति की जीत का एक बेहतरीन उदाहरण है.
बात उस समय की है, जब शनिदेव को अपनी शक्तियों पर बहुत अभिमान हो गया था. उन्हें यह विश्वास हो गया था कि ब्रह्मांड में ऐसा कोई नहीं है जो उनकी वक्र दृष्टि से बच सके. अपने इसी घमंड में चूर शनिदेव पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे, तभी उनकी नजर एक वानर पर पड़ी जो एकांत में बैठकर अपने आराध्य का ध्यान कर रहा था. वह वानर कोई और नहीं, बल्कि स्वयं हनुमान जी थे, जो प्रभु श्री राम की भक्ति में पूरी तरह से डूबे हुए थे.
शनिदेव ने सोचा कि इस वानर पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने का यह अच्छा मौका है. उन्होंने हनुमान जी पर अपनी टेढ़ी दृष्टि डाली, लेकिन उन्हें यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि हनुमान जी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा. वे वैसे ही शांत भाव से ध्यान में मग्न रहे. शनिदेव का अहंकार और बढ़ गया. उन्होंने हनुमान जी को ललकारते हुए कहा, "हे वानर! आँखें खोलो, मैं शनि हूँ, जिसकी दृष्टि मात्र से बड़े-बड़े साम्राज्य नष्ट हो जाते हैं."
हनुमान जी ने बहुत ही विनम्रता से अपनी आँखें खोलीं और पूछा, "हे देव, आप कौन हैं और यहाँ क्या कर रहे हैं? कृपया मुझे मेरे प्रभु का ध्यान करने दें."
हनुमान जी का यह शांत और सहज उत्तर शनिदेव को चुभ गया. क्रोध में आकर उन्होंने हनुमान जी की भुजा पकड़ ली. हनुमान जी ने एक झटके में अपनी भुजा छुड़ा ली. शनिदेव ने फिर से हनुमान जी को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन इस बार हनुमान जी को थोड़ा क्रोध आ गया. उन्होंने शनिदेव को अपनी पूंछ में लपेट लिया और फिर से श्री राम की भक्ति में लीन हो गए.
उन्हें यह ध्यान ही नहीं रहा कि उनकी पूंछ में न्याय के देवता शनिदेव फंसे हुए हैं. हनुमान जी भक्ति में इतने मग्न थे कि वे कभी पहाड़ों पर कूदते तो कभी पेड़ों पर उछलते. इस दौरान शनिदेव भी उनकी पूंछ के साथ इधर-उधर पटकते रहे, जिससे वे बुरी तरह से घायल हो गए और उनके शरीर में भयंकर पीड़ा होने लगी.
जब दर्द असहनीय हो गया, तो शनिदेव ने हार मान ली और हनुमान जी से क्षमा याचना की. उन्होंने अपने अहंकार के लिए माफी मांगी और वचन दिया कि वे भविष्य में कभी भी हनुमान जी या उनके भक्तों को परेशान नहीं करेंगे. तब जाकर हनुमान जी ने उन्हें अपनी पूंछ से आजाद किया.
कहा जाता है कि उस समय शनिदेव के घावों पर लगाने के लिए हनुमान जी ने उन्हें सरसों का तेल दिया था, जिससे उनकी पीड़ा शांत हुई. यही कारण है कि आज भी शनिवार के दिन शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाने की परंपरा है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं और भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं.
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