लखनऊ, 11 मार्च (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने 18 मण्डलों के 18 ग्राम प्रधानों को ढोलक, हारमोनियम, मजीरा, घुंघरू तथा झींका वाद्ययंत्रों की किट वितरित किया। उन्होंने कहा कि अगले चरण में उत्तर प्रदेश के 69 हजार ग्राम सभाओं को वाद्ययंत्र दिये जायेंगे।
जयवीर सिंह संगीत नाटक अकादमी गोमतीनगर के परिसर में संस्कृति विभाग की ओर से आयोजित कार्यक्रम में लोक कलाकार वाद्ययंत्र योजना के तहत ग्राम पंचायतों को वाद्ययंत्र वितरित करने के अवसर पर सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ग्रामीण अंचलों की लोक संगीत एवं विरासत को संवर्धित करने के लिए एक अनूठी पहल की गई है।
उन्होंने कहा कि भविष्य में प्रदेश के समस्त ग्राम सभाओं को चरणबद्ध रूप से वाद्ययंत्रों का सेट प्रदान किया जायेगा। उन्होंने कहा कि मोबाइल के बढ़ते प्रभाव के कारण ग्रामीण संस्कृति और लोक संगीत की शैली प्रभावित हुई है। इसको जीवंत बनाये रखने के लिए राज्य सरकार ने ग्राम पंचायतों को वाद्ययंत्र उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है।
पर्यटन मंत्री ने कहा कि सदियों से गांवों में अपनी लोकगायन की अनूठी परम्परा चलती आई है। मोबाइल के आने से धीरे-धीरे लोककला एवं वाद्ययंत्र विलुप्ति की कगार पर पहुंच रहे हैं। इस लोक विरासत एवं समृद्ध संस्कृति को बचाने की जिम्मेदारी हम सभी की है। लोक संस्कृति की बहुत गहरी जड़े हैं। गांव देहात की अपनी अनूठी शैली होती है। इसके माध्यम से सामाजिक एकता, भाईचारा एवं सामाजिक सद्भाव का ताना-बाना बना रहता है। उन्होंने कहा कि आधुनिक दौर में मोबाइल के कारण लोग एकांतवादी होते जा रहे हैं, जो हमारे लोक जीवन एवं लोक संस्कृति के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
जयवीर सिंह ने कहा कि लोक संगीत एवं कलाकार सामाजिक एकता को मजबूत करने का कार्य करते हैं। राज्य सरकार लोक संगीत, कला एवं वाद्ययंत्रों को जीवित रखने के लिए ग्राम पंचायतों को किट प्रदान करने की पहल की है। धीरे-धीरे सभी ग्राम पंचायतों में वाद्ययंत्र उपलब्ध करा दिये जायेंगे। इससे जहां एक ओर सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा, वहीं दूसरी ओर प्राचीन विरासत को जीवंत बनाकर अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य भी संभव होगा। उन्होंने कहा कि गांव के विकास तथा राष्ट्र की मुख्यधारा में भागीदारी की शुरूआत गांव से ही होती है। गांव में ही भारत की आत्मा बसती है।
इस अवसर पर प्रमुख सचिव संस्कृति एवं पर्यटन मुकेश मेश्राम ने कहा कि मोबाइल के दौर में लोक कलाएं विलुप्त हो रही हैं। पहले के समय में अलग-अलग संस्कारों के अवसर पर गायन वादन होता था। उन्होंने कहा कि ग्रामीण लोक संस्कृति को जीवंत बनाने के लिए वाद्ययंत्रों का वितरण किया जा रहा है।
इस अवसर पर भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलपति मांडवी सिंह, सहायक निदेशक संस्कृति रेनू रंग भारती तथा अहिरवार के अलावा विचार परिवार के सामाजिक प्रतिनिधि श्री राम कृपाल सिंह भदौरिया सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे।