Moon scare to Healthy mission: नासा के अंतरिक्ष यात्रियों का बदलता क्वारंटाइन कार्यक्रम

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News India Live, Digital Desk: Moon scare to Healthy mission: जब भी कोई अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष की यात्रा पर जाता है, तो उसे एक विशेष अवधि के लिए क्वारंटाइन में रखा जाता है। यह परंपरा पुरानी है, लेकिन इसके पीछे के कारण और तरीके समय के साथ बदल गए हैं, खासकर अपोलो मिशन से लेकर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक के सफर में।

अपोलो मिशन का शुरुआती डर: "चाँद के रोगाणु"

बात 1960 और 70 के दशक की है, जब नासा अपने अपोलो मिशन के तहत चंद्रमा पर इंसान भेजने की तैयारी कर रहा था। उस वक्त वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी चिंता यह थी कि अगर चांद पर कोई अज्ञात जीवाणु या पैथोजन मौजूद हुआ, और अंतरिक्ष यात्री उसे पृथ्वी पर ले आए, तो क्या होगा? इस डर के चलते, अपोलो 11 के तीनों अंतरिक्ष यात्रियों, नील आर्मस्ट्रांग, बज एल्ड्रिन और माइकल कॉलिन्स को चंद्रमा से लौटते ही कड़ी निगरानी में 'बायोलॉजिकल आइसोलेशन गारमेंट्स' (Biological Isolation Garments – BIGs) पहनाकर एक मोबाइल क्वारंटाइन सुविधा (Mobile Quarantine Facility – MQF) में रखा गया।

यह मोबाइल क्वारंटाइन सुविधा एक विशेष ट्रेलर जैसी थी, जिसमें फिल्टर किया गया वेंटिलेशन सिस्टम था। 21 दिनों तक उन्हें बाहर की दुनिया से पूरी तरह अलग रखा गया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनके साथ चांद से कोई अनचाहा जीव न आया हो। हालांकि, अपोलो 14 मिशन तक इस तरह का पोस्ट-फ़्लाइट क्वारंटाइन चला, जिसके बाद वैज्ञानिकों ने गहन अध्ययन और परीक्षणों के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि चंद्रमा पर जीवन का कोई अस्तित्व नहीं है और यह रोगाणुओं से मुक्त है। इसके बाद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए चंद्रमा से लौटने पर क्वारंटाइन की प्रथा समाप्त कर दी गई।

आधुनिक दौर: मिशन की सफलता और चालक दल का स्वास्थ्य

लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि क्वारंटाइन पूरी तरह खत्म हो गया। आज के दौर में, क्वारंटाइन का स्वरूप बदल गया है। अब अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में जाने से पहले क्वारंटाइन किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लॉन्च से ठीक पहले वे किसी भी संक्रमण या बीमारी का शिकार न हों।

अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष यान में चढ़ने से लगभग दो हफ्ते पहले विशेष आइसोलेशन सुविधाओं (जैसे कैनेडी स्पेस सेंटर या रूस के स्टार सिटी) में रखा जाता है। इस दौरान उनके बाहरी दुनिया से संपर्क को सीमित किया जाता है। परिवार के सदस्यों से मिलने की अनुमति होती है, लेकिन वे कांच के पार से ही बात कर सकते हैं, और आने वाले हर व्यक्ति का स्वास्थ्य परीक्षण होता है ताकि वे अनजाने में भी कोई कीटाणु लेकर न आएं।

सोचिए, अगर अंतरिक्ष यात्रा से ठीक पहले कोई अंतरिक्ष यात्री बीमार हो जाए तो क्या होगा? पूरी मिशन योजना खतरे में पड़ सकती है, क्योंकि लॉन्च को टालना बेहद महंगा और जटिल प्रक्रिया है। ज़ीरो ग्रेविटी और अंतरिक्ष यात्रा का तनाव पहले से ही शरीर पर बहुत ज़्यादा असर डालता है। ऐसे में किसी भी बीमारी से स्थिति और खराब हो सकती है और अंतरिक्ष यात्रियों की जान को भी खतरा हो सकता है। यह क्वारंटाइन यह सुनिश्चित करता है कि अंतरिक्ष यात्री पूरी तरह स्वस्थ होकर अपने मिशन पर जाएं, जिससे मिशन की सफलता और चालक दल की सुरक्षा बनी रहे। यह सुरक्षा और तैयारी का एक अहम हिस्सा है।

इस तरह, नासा का अंतरिक्ष यात्री क्वारंटाइन कार्यक्रम चंद्रमा से संभावित 'एलियन रोगाणुओं' के शुरुआती डर से विकसित होकर अब यह सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण प्रोटोकॉल बन गया है कि हमारे अंतरिक्ष खोजकर्ता सबसे अच्छी शारीरिक स्थिति में अपनी ऐतिहासिक यात्राएं पूरी कर सकें।

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