Meat production in the lab: बिना जानवर मारे तैयार होने वाला कल्चर्ड मीट, भविष्य का प्रोटीन या महंगा सौदा
- by Archana
- 2025-08-02 13:09:00
News India Live, Digital Desk: Meat production in the lab: आज के समय में विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने हमारे भोजन के तरीकों को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी प्रगति का एक प्रमुख उदाहरण है 'लैब-गोन मीट' या 'कल्चर्ड मीट'। यह ऐसा मांस है जिसे प्रयोगशाला में, जानवरों के शरीर से लिए गए ऊतक (tissue) के छोटे से नमूने से तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में किसी भी जानवर को मारने या पालने की आवश्यकता नहीं होती।
लैब-गोन मीट कैसे बनता है?
लैब-गोन मीट का निर्माण मुख्य रूप से बायोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी पर आधारित होता है। इसके लिए, किसी जीवित जानवर से एक छोटा सा मसल सेल (muscle cell) या स्टेम सेल (stem cell) लिया जाता है। फिर इस सेल को एक विशेष पोषक तत्व युक्त घोल में रखा जाता है, जिसमें कोशिकाओं का विकास होता है। ये कोशिकाएं धीरे-धीरे बढ़कर मांस के तंतु (muscle fibers) का रूप ले लेती हैं। इसके बाद, इन तंतुओं को एक विशेष ढाँचे (scaffold) का उपयोग करके मांस जैसा आकार और बनावट दी जाती है। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, कोशिकाओं को बढ़ने के लिए आवश्यक पोषक तत्व, ग्रोथ हार्मोन और कभी-कभी भ्रूण गोजातीय सीरम (fetal bovine serum - FBS) का उपयोग किया जाता है।
क्या यह असली मांस का विकल्प बन सकता है?
लैब-गोन मीट के उत्पादकों का दावा है कि यह "एथिकल" (नैतिक) विकल्प प्रदान करता है। पारंपरिक मांस उत्पादन की तुलना में, लैब-गोन मीट के निर्माण में कम जमीन, पानी और चारे की आवश्यकता होती है। साथ ही, यह ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को भी कम करने में मदद करता है और पशु क्रूरता को समाप्त करता है।
हालाँकि, वर्तमान में यह तकनीक काफी महंगी है और बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन सीमित है। इसकी उत्पादन लागत को कम करना और उपभोक्ताओं के लिए इसे किफायती बनाना एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, कई संस्कृतियों और धर्मों के लोग इसे स्वीकार करने में हिचकिचा सकते हैं, और इसके स्वाद, बनावट और स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव को लेकर अभी और शोध की आवश्यकता है।
जब टेक्नोलॉजी अधिक उन्नत होगी और उत्पादन लागत कम होगी, तब यह आम लोगों के लिए अधिक सुलभ हो सकता है। लेकिन, यह पारंपरिक मांस का पूरी तरह से स्थान ले पाएगा या नहीं, यह भविष्य की लागत, उपभोक्ता स्वीकृति और पर्यावरणीय प्रभावों पर निर्भर करेगा।
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