कृष्ण जन्माष्टमी 2025 : कान्हा के लिए छप्पन भोग का महत्व और परंपरा की गहराई
आज पूरे विश्व में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। मध्यरात्रि में श्रीहरि का जन्म शिशु रूप में प्रतीकात्मक तरीके से मनाया जाता है। यह पर्व धार्मिक उत्साह, श्रद्धा और भक्तिभाव का अद्भुत संगम है। भक्त श्रीकृष्ण की झांकियां सजाते हैं, भजन गाते हैं और भगवान के लिए विशेष तौर पर छप्पन भोग तैयार करते हैं।
छप्पन भोग की खासियत और महत्व
भगवान कृष्ण को 56 व्यंजन का भोग क्यों लगता है? आमतौर पर सवाल यह उठता है – 50, 51 या 55 क्यों नहीं? इसका बड़ा आध्यात्मिक और ऐतिहासिक कारण है।
पुराणों के अनुसार, बाल गोपाल पूरे दिन में आठ बार भोजन करते थे – हर पहर पर सात्विक भोजन। जब ब्रज में गोवर्धन पूजा के दौरान एक दिन कृष्ण ने पूरा भोजन छोड़ दिया और सिर्फ एक बार ही खाया, तो मां यशोदा ने अगले दिन आठ पहरों के हिसाब से सात व्यंजन की जगह आठ पहरों में 56 व्यंजन तैयार किए। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
क्या-क्या होता है छप्पन भोग में?
इस भोग में केवल मिठाइयां ही नहीं, फल, नमकीन, शरबत, खिचड़ी, पकौड़ी, पंजीरी, माखन-मिश्री, सूखे मेवे, सब्जियां, रायता और कई प्रकार के परांठे, हलवा, खीर, लड्डू शामिल होते हैं। खास बात – यह सभी व्यंजन पूरी तरह सात्विक, बिना लहसुन-प्याज, शुद्ध घी और देशी तरीके से तैयार किए जाते हैं।
छप्पन भोग चढ़ाने के फायदे
कहा जाता है, भगवान को छप्पन भोग अर्पित करने से जितना पुण्य मिलता है, वह कई सत्कर्मों के बराबर होता है। मनोकामना पूरी करने, जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य पाने के लिए भक्त पूरे श्रद्धा भाव से यह भोग अर्पित करते हैं। यही वजह है कि जन्माष्टमी पर हर घर, मंदिर और आश्रमों में छप्पन भोग की परंपरा निभाई जाती है।
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