Karnataka High Court Decision : वो 7 साल का प्यार और एक वादा, फिर जाति बनी दीवार, जानिए कोर्ट ने क्यों कहा ये धोखा है
News India Live, Digital Desk: आजकल रिश्तों में वादे करना और फिर उनसे मुकर जाना आम होता जा रहा है. लेकिन जब कोई शादी का वादा करके किसी के साथ सालों तक संबंध में रहता है और फिर अपनी बात से पलट जाता है, तो ये सिर्फ दिल टूटना नहीं, बल्कि कानून की नज़र में एक बड़ा धोखा भी माना जा सकता है. ऐसा ही एक मामला कर्नाटक से सामने आया है, जिस पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक बहुत ही अहम फैसला सुनाया है.
आखिर क्या है पूरा मामला?
कहानी एक महिला और एक पुलिसकर्मी की है. दोनों एक-दूसरे से प्यार करते थे और उनका रिश्ता करीब 7 साल तक चला. महिला का आरोप है कि इस दौरान पुलिसकर्मी ने उससे शादी करने का पक्का वादा किया था. इस वादे पर भरोसा करके महिला उसके साथ शारीरिक संबंध में भी रही. सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन कहानी में मोड़ तब आया जब महिला ने पुलिसकर्मी को बताया कि वह दलित समुदाय से है.
महिला का कहना है कि जैसे ही उसकी जाति का पता चला, पुलिसकर्मी का व्यवहार बदल गया. उसने अचानक शादी करने से साफ इनकार कर दिया. उसका तर्क था कि उसके घरवाले इस शादी के लिए कभी नहीं मानेंगे.
जब बात नहीं बनी, तो महिला ने पुलिसकर्मी के खिलाफ धोखाधड़ी और अन्य धाराओं में शिकायत दर्ज करा दी. पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए FIR भी लिख ली.
जब पुलिसकर्मी पहुँचा हाईकोर्ट
अपने खिलाफ FIR दर्ज होने के बाद पुलिसकर्मी सीधा कर्नाटक हाईकोर्ट पहुँच गया. उसने अदालत से गुहार लगाई कि उसके खिलाफ दर्ज की गई FIR को रद्द कर दिया जाए, क्योंकि यह मामला झूठा है.
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस एम नागाप्रसन्ना की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने पुलिसकर्मी की दलीलें सुनने के बाद FIR को रद्द करने से साफ इनकार कर दिया. अदालत ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर कोई व्यक्ति शादी का वादा करके किसी महिला के साथ लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाता है और बाद में सिर्फ इसलिए मुकर जाता है क्योंकि उसे महिला की जाति पता चलती है, तो यह पहली नज़र में धोखाधड़ी का मामला बनता है.
कोर्ट ने माना कि आरोपी ने महिला की भावनाओं और भरोसे के साथ खिलवाड़ किया. शादी का झांसा देकर उसके साथ संबंध बनाना और फिर पीछे हट जाना, यह कानून की नज़र में एक गंभीर अपराध है. अदालत ने कहा कि इस मामले की पूरी जांच होनी चाहिए और सच्चाई सामने आनी चाहिए. इसलिए, FIR को रद्द नहीं किया जा सकता.
यह मामला उन लोगों के लिए एक बड़ा सबक है जो शादी के वादे को हल्के में लेते हैं और किसी की जाति को रिश्ते से ऊपर रखते हैं. कोर्ट का यह फैसला समाज को एक मजबूत संदेश देता है कि कानून की नज़र में ऐसा करना एक धोखा है.
--Advertisement--