Jitiya Vrat 2025 : जानें कब है संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाने वाला यह कठिन व्रत

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News India Live, Digital Desk: Jitiya Vrat 2025 :  एक मां के लिए उसकी संतान से बढ़कर कुछ नहीं होता। अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छी सेहत और खुशहाल जीवन के लिए वह कोई भी तपस्या करने को तैयार रहती है। ऐसी ही एक कठिन तपस्या का नाम है 'जीवित्पुत्रिका व्रत', जिसे हम सब 'जितिया व्रत' के नाम से भी जानते हैं।

यह व्रत तीन दिनों तक चलता है और इसमें महिलाएं 24 घंटे से भी ज्यादा समय तक बिना कुछ खाए-पिए (निर्जला) रहती हैं। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में रखा जाता है। अगर आप भी 2025 में यह व्रत रखने की सोच रही हैं, तो आइए जानते हैं इसकी सही तारीख, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।

कब है जितिया व्रत 2025? (Jitiya Vrat 2025 Dates)

यह तीन दिवसीय पर्व 'नहाय-खाय' से शुरू होता है और 'पारण' के साथ समाप्त होता है।

  • नहाय-खाय: 24 सितंबर 2025, बुधवार। इस दिन महिलाएं सुबह स्नान के बाद सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं।
  • जितिया व्रत (निर्जला): 25 सितंबर 2025, गुरुवार। यह व्रत का मुख्य दिन होता है, जब महिलाएं पूरे दिन और पूरी रात बिना पानी पिए उपवास रखती हैं।
  • व्रत का पारण: 26 सितंबर 2025, शुक्रवार। सूर्योदय के बाद शुभ मुहूर्त में व्रत खोला जाता है।

पूजा का शुभ मुहूर्त (Puja Muhurat)

जितिया व्रत की पूजा प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त के बाद की जाती है। 25 सितंबर को पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम को शुरू होगा।

क्यों रखा जाता है यह व्रत?

मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान के जीवन पर आने वाले सभी संकट टल जाते हैं और उन्हें लंबी आयु का वरदान मिलता है। इस व्रत में भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, जीमूतवाहन ने अपनी जान पर खेलकर एक नाग माता के पुत्रों को गरुड़ का भोजन बनने से बचाया था। उनकी इसी वीरता और परोपकारिता के कारण माताएं अपनी संतान की रक्षा के लिए उनकी पूजा करती हैं।

कैसे की जाती है पूजा?

  • जितिया के मुख्य दिन, महिलाएं स्नान करके प्रदोष काल में पूजा की तैयारी करती हैं।
  • कुश (एक प्रकार की घास) से भगवान जीमूतवाहन की मूर्ति बनाई जाती है।
  • धूप, दीप, अक्षत, फूल और नैवेद्य चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है।
  • पूजा के दौरान व्रत कथा सुनना अनिवार्य माना जाता है।
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद ही महिलाएं अन्न-जल ग्रहण करके अपने व्रत का पारण करती हैं।

यह व्रत एक मां के प्रेम, त्याग और असीम शक्ति का प्रतीक है, जो अपनी संतान के लिए हर कष्ट सहने को तैयार रहती है।

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