Jharkhand News : हाईकोर्ट का पारा चढ़ा निशिकांत दुबे से जुड़े इस मामले में लगा दिया 2000 का जुर्माना
News India Live, Digital Desk : अदालती कार्यवाही अक्सर सुस्त मानी जाती है, लेकिन जब जजों का सब्र टूटता है, तो सख्त फैसले देखने को मिलते हैं। आज रांची, झारखंड हाईकोर्ट से एक ऐसी ही खबर आई है जो भाजपा सांसद निशिकांत दुबे (Nishikant Dubey) और गो-तस्करी (Cattle Smuggling) मामले से जुड़ी है।
अदालत ने नाराजगी जताते हुए 2000 रुपये का जुर्माना (Cost) लगाया है। अब आप सोच रहे होंगे कि सांसद के मामले में 2000 रुपये का जुर्माना क्या मायने रखता है? लेकिन कानूनी भाषा में इसे 'हर्जाना' या 'कॉस्ट' कहते हैं, जो यह बताने के लिए काफी है कि कोर्ट लापरवाही बर्दाश्त नहीं करेगा।
आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि कोर्ट ने यह कदम क्यों उठाया और पूरा मामला क्या है।
मामला क्या है? (The Context)
यह पूरा मामला गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे से जुड़ा है। उनके खिलाफ दर्ज कुछ प्राथमिकियों (FIRs) को निरस्त करने या उससे जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई चल रही थी। मामला कथित मवेशी तस्करी या उससे जुड़े बयानों/कार्रवाइयों के इर्द-गिर्द घूमता है, जो झारखंड की राजनीति में अक्सर गर्माया रहता है।
2000 का जुर्माना क्यों लगा? (Reason behind the Fine)
खबरों के मुताबिक़, हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार (State Government) और संबंधित पक्ष से 'जवाब' (Affidavit/Response) दाखिल करने को कहा था। यानी कोर्ट जानना चाहती थी कि इस केस में अब तक क्या जांच हुई है या पुलिस का क्या कहना है।
लेकिन, तय समय बीत जाने के बाद भी जवाब दाखिल नहीं किया गया। इसी लेटलतीफी को देखते हुए अदालत ने सख्त रुख अपनाया।
कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए प्रतिवादी पक्ष पर 2000 रुपये का आर्थिक दंड (Cost) लगाया है। यह पैसा किसी सरकारी खजाने में नहीं, बल्कि अक्सर बार एसोसिएशन या किसी फंड में जमा कराना होता है। यह एक 'चेतावनी' की तरह है कि कोर्ट का समय बर्बाद न किया जाए।
कोर्ट ने मांगा जवाब
सिर्फ जुर्माना ही नहीं लगाया, बल्कि झारखंड हाईकोर्ट ने सख्त निर्देश दिए हैं कि अगले दो हफ्तों के भीतर (या अगली तारीख तक) जवाब दाखिल किया जाए। अदालत ने साफ़ कर दिया है कि बिना ठोस जवाब के सुनवाई आगे नहीं बढ़ेगी।
इसका मतलब क्या है?
निशिकांत दुबे और हेमंत सोरेन सरकार के बीच जुबानी जंग और कानूनी लड़ाइयां कोई नई बात नहीं हैं। निशिकांत दुबे अक्सर संथाल परगना में हो रही अवैध गतिविधियों (जैसे बांग्लादेशी घुसपैठ या गो-तस्करी) पर मुखर रहते हैं, जिसके चलते कई बार उन पर भी केस दर्ज होते हैं।
हाईकोर्ट का यह एक्शन बताता है कि न्यायपालिका चाहती है कि इन हाई-प्रोफाइल मामलों में पुलिस और सरकार तेजी दिखाए, फाइलों को लटका कर न रखे। अब सबकी नज़र इस बात पर है कि अगली सुनवाई में सरकार कोर्ट को क्या जवाब देती है।
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