अस्पताल की ज़मीन और अफसरों की सेटिंग झारखंड हाईकोर्ट ने खोली रिम्स की पुरानी फाइलें

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News India Live, Digital Desk : झारखंड की राजधानी रांची में स्थित 'रिम्स' (RIMS) को सूबे के सबसे बड़े मेडिकल संस्थान के तौर पर देखा जाता है। यहाँ रोज़ाना हज़ारों गरीब अपना इलाज कराने आते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से यह संस्थान अपनी बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कम और ज़मीन से जुड़े विवादों के लिए ज़्यादा चर्चा में रहा है। अब इस पूरे मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने जो रुख अपनाया है, उसने शासन-प्रशासन के बड़े अधिकारियों की नींद उड़ा दी है।

मामला काफी पेचीदा और पुराना है रिम्स की सरकारी ज़मीन का अवैध रूप से निजी या अन्य गलत कार्यों के लिए आवंटन करना। हाईकोर्ट ने साफ़ शब्दों में कहा है कि सरकारी ज़मीन कोई खैरात नहीं है कि जिसे चाहे उसे बाँट दिया जाए। कोर्ट ने अब उन तमाम अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया है, जिनकी नाक के नीचे यह सब हुआ या जिन्होंने इस गड़बड़ी में बराबर का साथ दिया।

क्या है यह ज़मीन का खेल?
असल में रिम्स के पास जो ज़मीन है, वह स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार और मरीजों के बेहतर इलाज के लिए रिज़र्व रखी गई थी। लेकिन फाइलों में ऐसा "खेल" किया गया कि वह ज़मीन धीरे-धीरे अवैध आवंटन का शिकार हो गई। सालों तक मामला खिंचता रहा, लेकिन अब हाईकोर्ट की सख्ती ने साफ कर दिया है कि झारखंड में कानून का राज किसी भी अधिकारी की मनमानी से ऊपर है।

अब कार्रवाई की तलवार लटक रही है
कोर्ट ने सिर्फ इतना ही नहीं कहा कि आवंटित ज़मीन को वापस लिया जाए, बल्कि उन अफसरों की लिस्ट मांगी है जो उस वक्त अपनी कुर्सियों पर बैठकर 'खामोश' थे या फिर फाइलें आगे बढ़ा रहे थे। कोर्ट का ये तेवर साफ़ बताता है कि आने वाले दिनों में रांची के सरकारी महकमों में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। बहुत से ऐसे नाम सामने आ सकते हैं जो अब तक खुद को सुरक्षित मान रहे थे।

आम जनता के लिए इसका क्या मतलब है?
देखा जाए तो यह सिर्फ ज़मीन का मामला नहीं है। रिम्स जैसे संस्थान के पास जितनी ज़्यादा जगह होगी, उतनी ही बेहतर व्यवस्था मरीजों को मिल पाएगी। नई बिल्डिंगें, ट्रामा सेंटर या पार्किंग—ये सब तभी मुमकिन है जब संस्थान के पास अपनी ज़मीन हो। कोर्ट का यह फैसला झारखंड के उन मरीजों की एक बड़ी जीत है जो सुविधाओं की कमी की वजह से इधर-उधर भटकने को मजबूर होते हैं।

हाईकोर्ट का ये फैसला उन लोगों के लिए भी एक कड़ा सबक है, जो सरकारी संपत्ति को निजी जागीर समझकर अपनी तिजोरियां भरने की फिराक में रहते हैं। उम्मीद है कि अब न सिर्फ ज़मीन वापस आएगी, बल्कि दोषी अधिकारी जेल की हवा भी खाएंगे।

देखना दिलचस्प होगा कि सरकार अब कोर्ट के इस आदेश के बाद अपने "करीबी" चेहरों को बचाती है या वाकई उन पर कानूनी डंडा चलाती है।

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