जटाधारा मूवी रिव्यू: यह सिर्फ़ फिल्म नहीं, दिमाग हिला देने वाला एक रोंगटे खड़े कर देने वाला अनुभव है!

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कुछ फिल्में कहानी सुनाती हैं, और कुछ आपको एक दूसरी ही दुनिया में ले जाती हैं. 'जटाधारा' दूसरी वाली कैटेगरी की फिल्म है. सुधीर बाबू, सोनाक्षी सिन्हा और दिव्या खोसला कुमार की यह फिल्म सिर्फ़ देखी नहीं जाती, बल्कि महसूस की जाती है. अगर आप कुछ ऐसा देखना चाहते हैं जो आपको सीट से बांधे रखे और सोचने पर मजबूर कर दे, तो यह फिल्म आपके लिए ही बनी है.

कहानी: जब विज्ञान का सामना हुआ प्राचीन रहस्यों से

फिल्म की कहानी हमें ले जाती है केरल के रहस्यमयी और भव्य पद्मनाभ स्वामी मंदिर में. यहां सदियों पुराना एक अनुष्ठान 'पिशाच बंधनम' मंदिर के छुपे हुए खजाने की रक्षा करता है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे आत्माओं को बांधकर खजाने को सुरक्षित रखा जाता है.

अब सोचिए, क्या होता है जब इस आस्था और रहस्य की दुनिया में एक ऐसा इंसान कदम रखता है जो सिर्फ़ विज्ञान और तर्क पर विश्वास करता है? सुधीर बाबू (शिव) का किरदार ठीक यही करता है. फिल्म का सबसे रोमांचक हिस्सा यही है कि कैसे प्राचीन मंत्रों और अनुष्ठानों का टकराव आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों और तर्क से होता है. यह सिर्फ एक सुपरनैचुरल थ्रिलर नहीं है, बल्कि यह विज्ञान और विश्वास के बीच की एक दिलचस्प जंग है.

किसने क्या कमाल किया?

  • सुधीर बाबू (शिव): सुधीर बाबू ने एक ऐसे किरदार को जिया है जो सिर्फ सबूतों पर यकीन करता है, लेकिन जब उसका सामना ऐसी शक्तियों से होता है जिन्हें विज्ञान समझा नहीं सकता, तो उसके विश्वास की नींव हिल जाती है. उनके चेहरे पर उलझन, आंखों में गहराई और दमदार एक्टिंग आपको उनके किरदार से जोड़ देती है.
  • सोनाक्षी सिन्हा (धना पिशाची): सोनाक्षी सिन्हा ने तो इस फिल्म में आग लगा दी है! तेलुगु फिल्मों में यह उनका डेब्यू है और क्या कमाल का डेब्यू है. उनका किरदार 'धना पिशाची' लालच, दुख और शक्ति का एक मिलाजुला रूप है. उनकी आंखों में खौफ और स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी आपको हैरान कर देगी. उनका ट्रांसफॉर्मेशन इतना भव्य और डरावना है कि यह सीन आपको longtemps तक याद रहेगा.
  • दिव्या खोसला कुमार (सितारा): दिव्या ने अपने किरदार को बहुत सादगी और खूबसूरती से निभाया है. बाकी सपोर्टिंग एक्टर्स ने भी कहानी को मजबूती दी है.

फिल्म की असली हीरो: कैमरा और म्यूजिक

'जटाधारा' की सबसे बड़ी ताकत इसका कैमरा वर्क (सिनेमेटोग्राफी) है. मंदिर के अंधेरे गलियारे, दीयों की टिमटिमाती रोशनी, मंत्रों के बीच उठता धुआं... आपको ऐसा लगेगा जैसे आप खुद उस मंदिर में मौजूद हैं. हर एक फ्रेम किसी खूबसूरत पेंटिंग जैसा लगता है.

फिल्म का म्यूजिक और साउंड डिज़ाइन रोंगटे खड़े कर देता है. मंदिर की घंटियों, मंत्रों के जाप और अचानक पसर जाने वाली चुप्पी का ऐसा मेल है कि यह सीधे आपके दिल में उतरता है.

क्यों देखें यह फिल्म?

यह सिर्फ एक डरावनी फिल्म नहीं है. यह एक ऐसा अनुभव है जो आपको सोचने पर मजबूर करेगा. डायरेक्टर वेंकट कल्याण और अभिषेक जायसवाल ने हिम्मत का काम किया है और एक ऐसी कहानी पेश की है जो आज से पहले आपने शायद ही देखी होगी. फिल्म के एक्शन सीन भी सिर्फ मार-धाड़ नहीं, बल्कि एक रूहानी अनुभव की तरह हैं.

हमारा फैसला (3.5/5 स्टार)

यह फिल्म मोबाइल या लैपटॉप पर देखने के लिए नहीं बनी है. इसका असली मज़ा बड़े पर्दे पर ही है. अगर आप इस वीकेंड कुछ नया, रहस्यमय, रोमांचक और सोचने पर मजबूर कर देने वाला अनुभव चाहते हैं, तो 'जटाधारा' को थिएटर में जाकर ज़रूर देखें.

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