क्या दिल्ली-मुंबई का ‘सपना’ अब टूट रहा है? जानिए क्यों लोग अब इन छोटे शहरों में बसा रहे हैं अपना आशियाना
एक समय था जब हर छोटे शहर के नौजवान की आंखों में एक ही सपना होता था - दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे किसी बड़े शहर में जाना, अच्छी नौकरी करना और एक शानदार जिंदगी जीना। इन शहरों की चकाचौंध, ऊंचे मॉल और तेज रफ्तार जिंदगी हर किसी को अपनी ओर खींचती थी।
लेकिन अब, कहानी बदल रही है। हवा का रुख पलट चुका है।
जो लोग सालों से इन महानगरों में रह रहे थे, अब वे खुद इन शहरों को अलविदा कहकर वापस छोटे और शांत शहरों की ओर लौट रहे हैं। दिल्ली और मुंबई का ‘सपना’ अब कई लोगों के लिए एक ‘घुटन’ और ‘सिरदर्द’ बनता जा रहा है।
तो आखिर लोग इन ‘सपनों के शहरों’ से क्यों भाग रहे हैं?
- जहरीली हवा, दम घोंटती जिंदगी: यह सबसे बड़ी और सबसे डरावनी वजह है। दिल्ली-एनसीआर जैसे शहरों की हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि यहां सांस लेना भी एक सजा बन गया है। लोग अब अपने और अपने बच्चों के स्वास्थ्य से समझौता करने को तैयार नहीं हैं।
- ट्रैफिक में फंसी जिंदगी: इन शहरों में लोगों की आधी जिंदगी सड़कों पर गाड़ियों की अंतहीन कतारों में फंसकर ही निकल जाती है। 2 घंटे ऑफिस जाने में, 2 घंटे आने में... यह रोजाना की थकान अब लोगों का सुकून छीन रही है।
- जेब खाली करने वाला खर्चा: बड़े शहरों में आपकी आधी से ज्यादा सैलरी तो सिर्फ घर के किराए और आने-जाने में ही खत्म हो जाती है। घर खरीदने का तो सपना देखना भी मुश्किल है।
- सुकून की कमी: भीड़, शोर और भागदौड़ भरी जिंदगी ने लोगों से उनकी मानसिक शांति छीन ली है।
तो कहां जा रहे हैं ये लोग? (नए ‘सपनों के शहर’)
अब लोगों का नया सपना बदल गया है। उन्हें अब चकाचौंध नहीं, सुकून चाहिए। वे अब टियर-2 शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, जैसे:
- लखनऊ
- जयपुर
- इंदौर
- देहरादून
- पुणे
इन शहरों में उन्हें वो सब मिल रहा है जो महानगरों ने छीन लिया था - साफ हवा, कम ट्रैफिक, बजट में अपना घर और एक सुकून भरी, शांत जिंदगी।
कैसे संभव हुआ यह बदलाव?
इस बड़े बदलाव का सबसे बड़ा हीरो है ‘वर्क फ्रॉम होम’ (Work From Home) का कल्चर। कोरोना महामारी ने हमें सिखा दिया कि अच्छी नौकरी करने के लिए किसी बड़े शहर के महंगे ऑफिस में बैठना जरूरी नहीं है। अब ऑफिस आपके लैपटॉप में है, जिसे आप कहीं भी ले जा सकते हैं।
यह सिर्फ एक ट्रेंड नहीं है, यह एक नई क्रांति है। यह भारत की उस युवा पीढ़ी की कहानी है जो अब ‘पैसे’ से ज्यादा ‘शांति’ को और ‘करियर’ से ज्यादा ‘सेहत’ को चुन रही है।
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