दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन महाकुंभ मेला न सिर्फ आध्यात्मिकता और संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती भी बन जाता है। हालांकि, भारत के धार्मिक और आध्यात्मिक नेता इस आयोजन को पर्यावरण-अनुकूल बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
भारत की 140 करोड़ आबादी में से एक-तिहाई लोग अब तक महाकुंभ में शामिल हो चुके हैं।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित यह महोत्सव करीब छह हफ्तों तक चला।
राज्य सरकार के मुताबिक, इस आयोजन में 52 करोड़ से अधिक लोगों ने भाग लिया, जो कि सभी अनुमानों से कहीं ज्यादा था।
महाकुंभ के दौरान पर्यावरणीय संकट
इतने बड़े पैमाने पर तीर्थयात्रियों की उपस्थिति से स्थानीय जल संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र पर भारी दबाव पड़ा।
गंगा और यमुना नदियों का जल प्रदूषित हुआ।
कचरे का ढेर, जैविक और गैर-जैविक कचरे की समस्या बढ़ी।
गंगा और यमुना नदी के संगम में “फिकल कोलिफॉर्म” की उच्च मात्रा दर्ज की गई, जिससे सीवेज प्रदूषण का संकेत मिलता है।
जगद्गुरु कृपालु योग ट्रस्ट के आध्यात्मिक गुरु स्वामी मुकुंदानंद ने चेतावनी दी:
“अगर हम प्रकृति को नहीं बचाते, तो अगला कुंभ मेला बिना गंगा और यमुना के होगा।”
धार्मिक नेता और पर्यावरण संरक्षण की पहल
महाकुंभ 2025 में पहली बार आध्यात्मिक गुरुओं और संतों ने जलवायु संकट और पर्यावरण पर चर्चा की।
“फेथ फॉर अर्थ इनिशिएटिव” (Faith for Earth Initiative) के तहत धार्मिक संस्थाओं को पर्यावरण-संरक्षण से जोड़ा गया।
ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन आश्रम के प्रमुख चिदानंद सरस्वती ने कहा:
“अगर आस्था, धर्मगुरु, समाज और सरकार मिलकर काम करें, तो हम पर्यावरण संकट का समाधान निकाल सकते हैं।”
इथियोपिया के ऑर्थोडॉक्स टेवाहेदो चर्च सदियों से जंगलों को बचाने में मदद कर जैव विविधता का संरक्षण कर रहे हैं।
भारत में भी धर्मगुरुओं की मदद से “हरित कुंभ” को बढ़ावा दिया जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन: भारत के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है
इंसानी गतिविधियों के कारण जलवायु परिवर्तन भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुका है।
लू, बाढ़, भूस्खलन, सूखा और तूफानों की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं।
पानी, भोजन और ऊर्जा की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है।
पुणे स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरोलॉजी के वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कॉल के अनुसार:
“पूरे भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण अप्रत्याशित मौसमीय घटनाएं हो रही हैं।”
संयुक्त राष्ट्र की इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को आने वाले दो दशकों में जलवायु परिवर्तन से गंभीर आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।
धर्मगुरुओं की भूमिका: पर्यावरण संरक्षण के लिए अहम योगदान
वैज्ञानिक और सरकारी प्रयासों की पहुंच सीमित है, लेकिन धर्मगुरु अपने अनुयायियों को सतत विकास और पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
श्रीराम चंद्र मिशन की शालिनी मल्होत्रा ने कहा:
“आध्यात्मिक और धार्मिक नेताओं का यह मिशन अगर आगे बढ़ता रहा, तो भारत में पर्यावरण संरक्षण एक जन आंदोलन बन सकता है।”
धार्मिक नेताओं ने पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या कदम उठाने का वादा किया?
- अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy) को अपनाने का संकल्प।
- कचरा प्रबंधन की नीतियों को लागू करने की योजना।
- धार्मिक समुदायों में जलवायु शिक्षा को बढ़ावा देने का निर्णय।
मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा:
“हम धर्मगुरुओं की मदद से आम जनता को प्रकृति से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। यह अभी शुरुआत है, लेकिन हमें बहुत कुछ करना बाकी है।”