Indonesia Unique Tradition : यहां मुर्दों से बातें करते हैं लोग ,एक अनोखी परंपरा जहाँ शवों को मानते हैं परिवार का हिस्सा
News India Live, Digital Desk: Indonesia Unique Tradition : कैसा महसूस हो जब आप किसी ऐसे त्यौहार के बारे में सुनें जहाँ लोग अपने मरे हुए प्रियजनों की कब्र खोदकर उनके शवों को बाहर निकालते हैं, उन्हें नहलाते हैं, नए कपड़े पहनाते हैं और उनके साथ बैठकर बातें करते हैं? सुनने में भले ही यह किसी डरावनी फिल्म का सीन लगे, लेकिन इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप पर रहने वाले तोराजा समुदाय के लिए यह सदियों से चली आ रही एक सम्मान की परंपरा हैइस रस्म को 'मा'नेने' (Ma'nene) कहते हैं, जिसका मतलब होता है - शवों को साफ करने का समारोह.
यह कोई एक-दो दिन की बात नहीं, बल्कि हर कुछ साल में अगस्त के महीने में यह त्यौहार मनाया जाता हैतोराजा लोगों का मानना है कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं है, बल्कि एक लंबी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत है वे मरे हुए लोगों को 'मृत' नहीं, बल्कि 'बीमार' (तोमा कुला) मानते हैं. उनका विश्वास है कि जब तक किसी व्यक्ति का विधिवत अंतिम संस्कार नहीं हो जाता, जिसे 'रांबू सोलो' कहते हैं, तब तक उसकी आत्मा घर में ही रहती है.
क्यों निकाली जाती है कब्र से लाश?
मा'नेने त्यौहार के पीछे की भावना डर की नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति गहरे प्यार और सम्मान की है तोराजा समुदाय का मानना है कि अपने प्रियजनों के शवों की देखभाल करने से वे खुश होते हैं और परिवार को अच्छी फसल और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. यह त्यौहार उनके लिए अपने पूर्वजों से दोबारा मिलने, उनसे जुड़ने और अपनापन जताने का एक तरीका है.[3] इस दौरान परिवार के लोग अपने मरे हुए रिश्तेदारों की कब्रें खोलते हैं, शवों को सावधानी से बाहर निकालते हैं, उन्हें साफ करते हैं, नए कपड़े पहनाते हैं और फिर पूरे गांव में घुमाते हैं
लोग अपने प्रियजनों के शवों को उनका पसंदीदा खाना और यहाँ तक कि सिगरेट भी ऑफर करते हैं.परिवार के युवा सदस्य अपने पूर्वजों के शवों के साथ तस्वीरें और सेल्फी भी लेते हैं यह सब करने के बाद शवों को दोबारा नए ताबूत में रखकर सम्मान के साथ दफना दिया जाता है.
जब तक न हो अंतिम संस्कार, घर पर ही रखते हैं शव
तोराजा जनजाति की अंतिम संस्कार की प्रक्रिया भी काफी अलग है. जब किसी की मृत्यु होती है, तो परिवार तुरंत अंतिम संस्कार नहीं करता.इसके बजाय, वे शव को फॉर्मेल्डिहाइड जैसे लेप लगाकर घर के ही एक अलग कमरे में सहेजकर रखते हैं.इस दौरान उन्हें बीमार सदस्य की तरह ही माना जाता है और रोज़ाना खाना-पानी दिया जाता है.
अंतिम संस्कार, यानी 'रांबू सोलो', एक बहुत बड़ा और खर्चीला आयोजन होता है, जिसमें भैंसों और सूअरों की बलि दी जाती है.परिवार वाले महीनों या कभी-कभी सालों तक पैसे जमा करते हैं, ताकि वे अपने प्रियजन को एक शानदार विदाई दे सकें. वे मानते हैं कि भैंसें मरने वाले की आत्मा को स्वर्ग (पुया) तक ले जाने का वाहन होती हैं. यही वजह है कि जब तक अंतिम संस्कार के लिए पर्याप्त पैसे जमा नहीं हो जाते, शव घर पर ही परिवार के साथ रहता है.
--Advertisement--