Indian Politics : एक CMजो राज्यपाल बना, फिर उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति भी ,कहानी उस नेता की जिसने ठुकरा दिया था PM का पद

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News India Live, Digital Desk: आज जब देश में उपराष्ट्रपति चुनाव की चर्चा गरम है, तो सियासत के पन्ने पलटकर एक ऐसे नेता को याद करना लाज़मी है, जिसका सफर किसी कहानी से कम नहीं. एक ऐसा नेता जो मुख्यमंत्री बना, फिर कई राज्यों का राज्यपाल रहा, देश का उपराष्ट्रपति बना और फिर सर्वोच्च पद, यानी राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचा. ये कहानी है डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा की, भारतीय राजनीति का वो चमकता सितारा, जिसने पद की लालसा में कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया.

भोपाल के मुख्यमंत्री से रायसीना हिल्स तक का सफर

बात उस दौर की है जब मध्य प्रदेश आज की तरह एक राज्य नहीं था. तब डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा सिर्फ 38 साल की उम्र में 1952 में तत्कालीन भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. वह उस समय के सबसे युवा मुख्यमंत्रियों में से एक थे. जब 1956 में राज्यों का पुनर्गठन हुआ और भोपाल का मध्य प्रदेश में विलय हो गया, तो वह राज्य की राजनीति में सक्रिय रहे.

इसके बाद उनका कद राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ता गया. उन्होंने आंध्र प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे बड़े और महत्वपूर्ण राज्यों के राज्यपाल के तौर पर अपनी प्रशासनिक क्षमता का लोहा मनवाया. राज्यपाल के तौर पर उनका कार्यकाल काफी चुनौतियों भरा रहा, लेकिन उन्होंने हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया.

उनकी राजनीतिक यात्रा का अगला पड़ाव था देश के उपराष्ट्रपति का पद. 1987 में वह भारत के उपराष्ट्रपति चुने गए और 1992 तक इस पद पर रहे. इसी दौरान देश ने कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे और उन्होंने राज्यसभा के सभापति के तौर पर सदन को बड़ी सूझबूझ से चलाया.

1992 में, वह देश के नौवें राष्ट्रपति चुने गए. उनका राष्ट्रपति बनना उनके लंबे और बेदाग राजनीतिक जीवन का सम्मान था.

जब ठुकरा दिया प्रधानमंत्री बनने का मौका

डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा के जीवन का सबसे चर्चित किस्सा जुड़ा है प्रधानमंत्री पद से. कहते हैं कि 1991 में जब राजीव गांधी की हत्या हुई, तो कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व का एक बड़ा संकट खड़ा हो गया. उस मुश्किल घड़ी में कई बड़े नेताओं की नज़र डॉक्टर शर्मा पर थी और उन्हें प्रधानमंत्री पद संभालने का प्रस्ताव दिया गया. लेकिन उन्होंने विनम्रता से इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए कहा कि वह इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभालने की स्थिति में नहीं हैं. यह घटना भारतीय राजनीति में निस्वार्थ सेवा और पद से ऊपर उठकर सोचने का एक बेहतरीन उदाहरण है.

आज जब राजनीति में पदों के लिए खींचतान आम बात है, तब डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा की कहानी यह याद दिलाती है कि एक राजनेता का कद उसके पदों से नहीं, बल्कि उसके सिद्धांतों और त्याग से बनता है.

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