Indian Air Force : भारत की हवाई ताक़त का सबसे बड़ा इम्तिहान, Su-57 या राफेल F4 – कौन बनेगा भारतीय आसमान का रक्षक?
News India Live, Digital Desk: Indian Air Force : आज हमारी भारतीय वायुसेना (IAF) एक ऐसे अहम मोड़ पर खड़ी है, जहाँ उसे भविष्य की चुनौतियों के लिए अपने आपको तैयार करना है. हमारे पुराने होते MiG-21 और जगुआर जैसे लड़ाकू विमानों की जगह अब नए और ज़्यादा शक्तिशाली जेट्स की सख़्त ज़रूरत है. हमें अपनी तयशुदा ज़रूरत के 42 स्क्वाड्रन के मुक़ाबले सिर्फ़ 31 स्क्वाड्रन ही हैं, जो सुरक्षा के लिहाज़ से चिंता की बात है. इस कमी को पूरा करने और ख़ासकर चीन व पाकिस्तान से बढ़ते खतरों का सामना करने के लिए, भारत को जल्द ही नए और आधुनिक लड़ाकू विमान चाहिए. इसी गहमागहमी में, दो बड़े फाइटर जेट – रूस का सुखोई Su-57 और फ्रांस का राफेल F4 – भारत की सुरक्षा ज़रूरतों के लिए अपनी-अपनी ख़ूबियाँ पेश कर रहे हैं. यह सिर्फ़ कुछ विमानों को खरीदने का मामला नहीं, बल्कि हमारी रक्षा और आत्मनिर्भरता के भविष्य का बड़ा फ़ैसला है.
आइए देखते हैं, ये दोनों विमान भारत को क्या ख़ास पेशकश कर रहे हैं और इनकी खूबियाँ व चुनौतियाँ क्या-क्या हैं:
1. रूस का सुखोई Su-57: पाँचवीं पीढ़ी का भरोसा और टेक्नोलॉजी हस्तांतरण का सुनहरा मौक़ा
Su-57 को रूस का पाँचवीं पीढ़ी का स्टील्थ (रडार की पकड़ में न आने वाला) मल्टी-रोल फाइटर जेट बताया जाता है. रूस ने Su-57E (जो इसका एक्सपोर्ट मॉडल है) के लिए भारत को एक बेहद आकर्षक ऑफ़र दिया है. इस ऑफ़र में सिर्फ़ विमान बेचना ही नहीं, बल्कि गहरी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (technology transfer), भारत में ही मिलकर इसका उत्पादन (सह-उत्पादन) और यहाँ तक कि पूरे 'सोर्स कोड' तक पहुँच देने का वादा भी किया गया है. अगर भारत यह प्रस्ताव मानता है, तो HAL (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) नासिक में Su-30MKI के लिए मौजूद सुविधाओं का इस्तेमाल करके Su-57 का निर्माण कर सकेगा. इससे हमारा 'आत्मनिर्भर भारत' का सपना मज़बूत होगा, और भारतीय हथियारों जैसे ब्रह्मोस-ए, अस्त्र और रुद्रम मिसाइलों को भी इसमें लगाने की सुविधा मिल सकेगी.
क्या हैं Su-57 की ख़ास बातें?
- पाँचवीं पीढ़ी की ताक़त: इसे स्टील्थ डिज़ाइन, अंदरूनी हथियारों की क्षमता, सुपरमैन्यूवरिबिलिटी (बहुत ज़्यादा पैंतरेबाजी की क्षमता), खुली वास्तुकला (ओपन आर्किटेक्चर) और आधुनिक एवियोनिक्स से लैस बताया जाता है. यह 3500 किलोमीटर की रेंज के साथ Mach 2 (ध्वनि की गति से दोगुनी) की गति से उड़ सकता है और 10 टन वज़न का पेलोड (हथियार और अन्य उपकरण) ले जा सकता है.
- कम लागत और ज़बरदस्त क्षमता: इसकी अनुमानित लागत लगभग 35-40 मिलियन डॉलर प्रति जेट है, जो इसे राफेल F4 से काफ़ी किफ़ायती बनाती है. यह परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है और 'लॉयल विंगमैन' मोड में ड्रोन के साथ भी काम कर सकता है. हवाई लड़ाई में इसकी कुशलता शानदार बताई जाती है.
- रूस के साथ गहरी दोस्ती: रूस के साथ भारत की दशकों पुरानी रक्षा साझेदारी भरोसेमंद रही है. रूस हमें हथियारों के कस्टमाइजेशन (अपनी ज़रूरत के हिसाब से बदलाव) में भी अधिक छूट देता है.
परेशानियाँ भी कम नहीं हैं:
- कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इसकी 'स्टील्थ क्षमता' उतनी उन्नत नहीं है जितनी कागज़ों पर दिखती है, और इसका रडार क्रॉस सेक्शन (RCS) राफेल F4 के बराबर या उससे ज़्यादा (0.1-1 वर्ग मीटर) हो सकता है, जबकि अमेरिका के F-35 का RCS 0.001 वर्ग मीटर है.
- कई जानकार इसे अभी भी "4++" पीढ़ी का विमान मानते हैं, क्योंकि इसका इंजन (AL-41F1S) पूरी तरह से पाँचवीं पीढ़ी के स्तर का नहीं है.
- भारत पहले भी रूस के साथ FGFA (पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान) प्रोजेक्ट से लागत और प्रदर्शन से जुड़ी चिंताओं के कारण हट गया था. पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध (सैंक्शन) भी इसकी डिलीवरी में देरी का कारण बन सकते हैं.
2. फ्रांस का राफेल F4: सिद्ध प्रदर्शन और भरोसे का विस्तार
भारतीय वायुसेना ने फ्रांस से 114 नए राफेल फाइटर जेट्स के F4 वेरिएंट खरीदने का प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय को भेजा है. राफेल F4 को 4.5-जनरेशन का मल्टी-रोल फाइटर जेट कहा जाता है, जिसमें पाँचवीं पीढ़ी के विमानों जैसी क्षमताएँ तो हैं, लेकिन पूर्ण स्टील्थ क्षमता नहीं है. भारतीय वायुसेना पहले से ही 36 राफेल जेट (F3R वेरिएंट) का इस्तेमाल कर रही है, इसलिए F4 को बेड़े में शामिल करना, सैनिकों को ट्रेनिंग देना और इसका रखरखाव करना तुलनात्मक रूप से आसान होगा.
क्या हैं राफेल F4 की ख़ास बातें?
- ओमनी-रोल क्षमता: राफेल अपनी 'ओमनी-रोल' क्षमता के लिए जाना जाता है, यानी यह हवा से हवा में, हवा से ज़मीन पर हमले और जासूसी मिशन सहित कई तरह के काम एक साथ कर सकता है.
- एडवांस्ड हथियार प्रणाली: यह उल्का (Meteor) BVRAAM (150 किलोमीटर से ज़्यादा रेंज वाली मिसाइल), मीका (MICA) मिसाइलों, AASM हैमर बम (70 किलोमीटर तक) और SCALP/स्टॉर्म शैडो क्रूज़ मिसाइलों (250 किलोमीटर से ज़्यादा) जैसे शक्तिशाली हथियारों से लैस हो सकता है.
- सिद्ध प्रदर्शन: राफेल ने 2020 में चीन के साथ पूर्वी लद्दाख के तनावपूर्ण हालात और 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान पाकिस्तान पर हुए हमलों में अपनी विश्वसनीयता और युद्ध क्षमताओं को साबित किया है. इसने चीनी PL-15 मिसाइलों को चकमा दिया.
- एडवांस टेक्नोलॉजी: इसमें स्पेक्ट्रा इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सूट, RBE2 AESA रडार, OSF IRST और AI-आधारित नेटवर्किंग सिस्टम शामिल हैं, जो पायलट को तुरंत सही निर्णय लेने में मदद करते हैं.
- सैफरन इंजन (Safran M88): राफेल में फ्रांस की सैफरन कंपनी का M88 इंजन इस्तेमाल होता है, जो कॉम्पैक्ट और हल्का है, जिससे जेट की गति और फुर्ती बढ़ती है. सैफरन भारतीय AMCA प्रोजेक्ट के लिए भी उच्च-थ्रस्ट इंजन बनाने के लिए भारत के साथ काम कर रहा है, जो इंजन टेक्नोलॉजी में एक बड़े सहयोग का संकेत है.
परेशानियाँ भी हैं:
- कीमत: 114 राफेल F4 जेट का प्रस्तावित सौदा 2 लाख करोड़ रुपये (लगभग $24 बिलियन) से भी ज़्यादा का है, जिससे एक विमान की अनुमानित लागत काफी ज़्यादा (करीब $120-210 मिलियन प्रति जेट) हो सकती है.
- टेक्नोलॉजी ट्रांसफर: हालाँकि 'मेक इन इंडिया' के तहत 60% से ज़्यादा स्वदेशी सामग्री का वादा किया गया है, लेकिन सोर्स कोड तक पूरी पहुँच जैसी सुविधा अभी तक रूसी ऑफ़र जितनी स्पष्ट नहीं है.
भारत का असमंजस और निर्णायक फ़ैसला:
भारतीय वायुसेना को एक तरफ तत्काल ज़रूरतों (पुराने विमानों को बदलना और स्क्वाड्रन की कमी पूरी करना) को देखना है, तो दूसरी तरफ भविष्य की सुरक्षा रणनीति, जिसमें स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता (जैसे AMCA प्रोजेक्ट) प्रमुख हैं.
- उत्पाद बनाम टेक्नोलॉजी: रूस का Su-57 "गहरे" टेक्नोलॉजी हस्तांतरण और सोर्स कोड के साथ अपेक्षाकृत कम कीमत में एक 5वीं पीढ़ी का विमान देने का वादा करता है. यह भारत को खुद की 5वीं/6वीं पीढ़ी के विमान विकसित करने में बहुत मदद करेगा. वहीं, राफेल F4 एक 'सिद्ध योद्धा' है, जिसके साथ भारतीय वायुसेना का अच्छा अनुभव है और इसका 'मेक इन इंडिया' प्रस्ताव मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर को भुनाएगा. हालांकि, Su-57 जितना पूर्ण टेक्नोलॉजी हस्तांतरण अभी राफेल के लिए साफ नहीं है.
- लागत: Su-57 साफ तौर पर राफेल F4 से सस्ता है, जो इतने बड़े ऑर्डर के लिए एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है.
- विश्वसनीयता और राजनीतिक रिश्ते: दोनों देश भारत के विश्वसनीय साझेदार रहे हैं. रूस के साथ दशकों पुराने मज़बूत रिश्ते हैं, जबकि फ्रांस हाल के वर्षों में एक महत्वपूर्ण रक्षा भागीदार के रूप में उभरा है.
आखिर में, भारत का यह फैसला सिर्फ़ लड़ाकू विमानों की क्षमता तक सीमित नहीं होगा, बल्कि यह हमारी दीर्घकालिक सामरिक स्वतंत्रता, आर्थिक प्रभाव, भू-राजनीतिक संबंधों और अपनी खुद की उन्नत रक्षा औद्योगिक क्षमता के निर्माण की दिशा में एक बड़ा और दूरगामी कदम होगा. भारत को न सिर्फ़ कुछ बेहद उन्नत 'टॉप-टियर' फाइटर्स की ज़रूरत है, बल्कि 'मिडिल-टियर' वाले वर्कहॉर्स विमानों की भी बड़ी संख्या में ज़रूरत है. इसलिए, शायद यह केवल "एक" विमान चुनने का सवाल न हो, बल्कि दोनों के बीच संतुलन बिठाने या एक मिला-जुला मॉडल अपनाने का भी हो, जो हमारी सुरक्षा ज़रूरतों और आत्मनिर्भरता के सपनों को एक साथ पूरा कर सके.
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