"जरूरत पड़ी तो पुरखों की कब्र खोदकर DNA का सबूत देंगे, पर हम तो यहीं के हैं!"
यहाँ उस लेख को एक नई, सरल और मानवीय कहानी कहने वाली शैली में लिखा गया है:
"जरूरत पड़ी तो पुरखों की कब्र खोदकर DNA का सबूत देंगे, पर हम तो यहीं के हैं!"
सोचिए, आप जिस मिट्टी में पैदा हुए, जहां आपकी कई पीढ़ियां जन्मीं और दफन हो गईं, जहां आप हर चुनाव में वोट डालते आए हैं, एक सुबह अचानक कोई आपसे आकर कहे - "साबित करो कि तुम इसी देश के हो।"
यह किसी फिल्म की कहानी नहीं, बल्कि बिहार के बेगूसराय में रहने वाले लगभग 30 परिवारों की कड़वी हकीकत है। ये परिवार, जो "ईरानी समुदाय" के नाम से जाने जाते हैं और जिनका इतिहास इस धरती से सदियों पुराना है, आज अपनी ही जमीन पर अपनी पहचान के लिए लड़ने को मजबूर हैं।
चुनाव से पहले आया एक नोटिस और उजड़ गई नींदें
बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की आहट के बीच, इन 30 ईरानी मूल के मतदाताओं के घरों पर एक कानूनी नोटिस पहुंचा है। इस नोटिस में उनकी भारतीय नागरिकता पर सवाल उठाया गया है और पूछा गया है कि उनका नाम वोटर लिस्ट में क्यों नहीं हटाया जाना चाहिए। यह नोटिस विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक स्थानीय नेता की शिकायत के बाद भेजा गया है।
जिस दिन से यह नोटिस आया है, इन परिवारों की रातों की नींद और दिन का चैन छिन गया है। उनके लिए यह सिर्फ एक कागज का टुकड़ा नहीं, बल्कि उनके पूरे वजूद पर एक सवालिया निशान है।
कौन हैं ये लोग?
यह ईरानी समुदाय लगभग 200-300 साल पहले ईरान से आकर यहीं बेगूसराय में बस गया था। तब से उनकी पीढ़ियां यहीं पली-बढ़ीं, यहीं की बोली-भाषा सीखी और यहीं की संस्कृति में रच-बस गईं। वे खुद को किसी भी दूसरे बिहारी से कम नहीं समझते। उनके पास आधार कार्ड है, वोटर कार्ड है और वे पीढ़ियों से हर चुनाव में वोट देते आए हैं।
एक पीड़ा, जो शब्दों में बयां हो रही है
जब उनसे उनकी पहचान का सबूत मांगा गया, तो उनका दर्द छलक उठा। एक स्थानीय व्यक्ति ने भावुक होकर कहा, "हमारे पूर्वज यहीं दफन हैं। हम भारतीय हैं और अगर अपनी नागरिकता साबित करने के लिए जरूरत पड़ी, तो हम उनकी कब्रों से हड्डियां निकालकर DNA जांच के लिए भी तैयार हैं।"
यह एक वाक्य उनके उस गहरे दर्द और सदमे को बयां करता है जो उन्हें अपनी ही जड़ों पर सवाल उठाए जाने से पहुंचा है। उनके लिए यह एक कानूनी लड़ाई से कहीं ज्यादा, अपनी पहचान और सम्मान को बचाने की लड़ाई बन गई है। चुनाव आते-जाते रहेंगे, लेकिन इस नोटिस ने इन लोगों के मन पर एक ऐसा घाव दे दिया है, जिसे भरने में शायद सालों लग जाएं।
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