Historical Buildings : कभी था नवाबों का शाही महल, आज है साकेत सदन, लखनऊ की दिलकुशा कोठी की भूली-बिसरी कहानी
News India Live, Digital Desk: Historical Buildings : अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य जोर-शोर से चल रहा है, लेकिन इस विशाल परियोजना की देखरेख और बैठकों का केंद्र दिल्ली में स्थित एक ऐसी इमारत है, जिसका इतिहास सीधे अवध के नवाबों से जुड़ता है। हम बात कर रहे हैं 'दिलकुशा कोठी' की, जिसे आज 'साकेत सदन' के नाम से जाना जाता है। यह कभी अवध के तीसरे नवाब, शुजा-उद-दौला का शाही महल हुआ करता था, लेकिन वक़्त के साथ इसकी पहचान और मकसद दोनों बदल गए।
नवाब शुजा-उद-दौला और उनकी दिलकुशा कोठी
18वीं शताब्दी में नवाब शुजा-उद-दौला अवध के एक शक्तिशाली शासक थे। उन्होंने अपनी रियासत को मजबूत करने के लिए फैजाबाद को अपनी राजधानी बनाया और यहीं पर कई शानदार इमारतों का निर्माण करवाया, जिनमें से एक दिलकुशा कोठी भी थी। जैसा कि नाम से ही जाहिर है, यह कोठी 'दिल को खुश करने वाली' जगह थी। इसे नवाब और उनके परिवार के आराम और मनोरंजन के लिए बनाया गया था। इसकी वास्तुकला में मुगल और अवधी शैली का खूबसूरत संगम देखने को मिलता था।
यह महल न सिर्फ नवाबी शान का प्रतीक था, बल्कि उस दौर की कई महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं का भी गवाह रहा।
रॉयल पैलेस से 'साकेत सदन' बनने का सफर
समय बदला, सल्तनतें बदलीं और नवाबी दौर खत्म हो गया। अंग्रेजों के आने के बाद अवध की कई ऐतिहासिक इमारतों की तरह दिलकुशा कोठी ने भी उपेक्षा और गुमनामी का एक लंबा दौर देखा। आजादी के बाद, भारत सरकार ने कई रियासतों की संपत्तियों का अधिग्रहण कर लिया और उन्हें अलग-अलग के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा।
इसी क्रम में, दिल्ली में स्थित नवाब शुजा-उद-दौला की यह संपत्ति भी सरकार के अधीन आ गई। हाल के वर्षों में, जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ, तो इस ऐतिहासिक इमारत को एक नई भूमिका मिली। भारत सरकार ने इस भवन को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को आवंटित कर दिया, ताकि मंदिर निर्माण से जुड़ी सभी गतिविधियों और बैठकों का संचालन यहां से आसानी से हो सके।
ट्रस्ट को सौंपे जाने के बाद, इस इमारत का नाम बदलकर 'साकेत सदन' कर दिया गया। 'साकेत' अयोध्या का ही एक प्राचीन नाम है, इसलिए यह नाम मंदिर और उसकी विरासत से सीधा जुड़ाव महसूस कराता है।
आज, साकेत सदन भले ही नवाबों की विलासिता का केंद्र न हो, लेकिन यह एक नए और बेहद महत्वपूर्ण ऐतिहासिक अध्याय का केंद्र बिंदु बन चुका है। यह इमारत इस बात का प्रतीक है कि कैसे समय के साथ एक ही स्थान के मायने और उसकी पहचान पूरी तरह से बदल सकती है।
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