Hindu Mythology : जब भगवान शिव ने एक असुर को दिया अमरता का वरदान, पढ़ें यह पौराणिक कथा

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Newsindia live,Digital Desk:  Hindu Mythology : हिंदू पौराणिक कथाएं ज्ञान और रहस्यों से भरी हैं। ऐसी ही एक रोचक कथा है गजासुर नामक असुर की, जो भगवान शिव का एक महान भक्त था। अपनी कठोर तपस्या और अटूट भक्ति के बल पर उसने न केवल महादेव को प्रसन्न किया, बल्कि उनसे अमरता का एक अनोखा वरदान भी प्राप्त किया, जिससे उसका नाम हमेशा के लिए शिव के साथ जुड़ गया।

गजासुर की कठोर तपस्या और वरदान
पौराणिक कथाओं के अनुसार, गजासुर एक अत्यंत शक्तिशाली असुर था, लेकिन उसके मन में भगवान शिव के प्रति अगाध श्रद्धा थी। उसने महादेव को प्रसन्न करने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की। उसकी भक्ति और दृढ़ता से प्रसन्न होकर भगवान शिव उसके समक्ष प्रकट हुए और उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा। गजासुर ने शिव से ऐसा वरदान मांगा जिससे वह अत्यंत शक्तिशाली और अजेय बन जाए। भोलेनाथ ने अपने भक्त की इच्छा पूरी करते हुए उसे यह वरदान दे दिया।

वरदान का दुरुपयोग और देवताओं का संकट
शिव से अजेय होने का वरदान पाकर गजासुर अहंकार में अंधा हो गया। वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने लगा और तीनों लोकों में अत्याचार मचाने लगा। उसने देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों को भी परेशान करना शुरू कर दिया। उसके आतंक से त्रस्त होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और इस संकट से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की।

भगवान विष्णु की लीला और शिव का उद्धार
देवताओं की पुकार सुनकर, भगवान विष्णु ने एक योजना बनाई। वह भगवान शिव के वाहन नंदी को साथ लेकर एक संगीतकार के रूप में गजासुर के दरबार में पहुंचे। नंदी ने वीणा बजाई और भगवान विष्णु ने इतना सुंदर नृत्य किया कि गजासुर मंत्रमुग्ध हो गया। अपनी कला से प्रसन्न होकर गजासुर ने विष्णु से कुछ भी मांगने को कहा। तब विष्णु रूपी संगीतकार ने उससे भगवान शिव को मुक्त करने की मांग की। दरअसल, गजासुर ने अपनी शक्तियों से भगवान शिव को अपने पेट में बंदी बना लिया था।

अपने वचन का मान रखते हुए गजासुर ने अपने शरीर से भगवान शिव को बाहर निकलने दिया। जब शिव बाहर आए तो उन्होंने गजासुर का वध कर दिया। मृत्यु से पहले, गजासुर ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वह उसकी त्वचा को अपने वस्त्र के रूप में धारण करें और जिस स्थान पर उसका वध हुआ, वह 'कृत्तिवासेश्वर' के नाम से प्रसिद्ध हो। भगवान शिव ने अपने परम भक्त की अंतिम इच्छा को स्वीकार किया। तभी से वह बाघ की खाल की जगह हाथी की खाल (गज चर्म) धारण करते हैं और काशी में कृत्तिवासेश्वर महादेव के रूप में पूजे जाते हैं। इस तरह एक असुर अपनी भक्ति के बल पर भगवान शिव के साथ हमेशा के लिए अमर हो गया।

 

 

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