छोटे कर्मचारी को परेशान करना पड़ा महंगा, हाईकोर्ट ने हेमंत सरकार को लगाई फटकार, 20 हजार का जुर्माना भी ठोका

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News India Live, Digital Desk: झारखंड हाईकोर्ट ने एक मामले में हेमंत सोरेन सरकार के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताते हुए न सिर्फ उसकी अपील खारिज कर दी, बल्कि बेवजह की मुकदमेबाजी कर जनता के पैसे और अदालत का समय बर्बाद करने के लिए 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार एक तरफ मुकदमेबाजी कम करने के लिए कमेटियां बना रही है, तो दूसरी तरफ छोटे-छोटे मामलों में अपील करके अदालत का बोझ बढ़ा रही है।

यह पूरा मामला एक चतुर्थवर्गीय कर्मचारी (ड्राइवर) विजय कुमार राम से जुड़ा हुआ है, जिसे परेशान करने के लिए सरकार हाईकोर्ट की डबल बेंच तक पहुंच गई, लेकिन उसे वहां भी मुंह की खानी पड़ी।

क्या था यह पूरा मामला?

दरअसल, रांची सिविल कोर्ट में ड्राइवर के पद पर काम करने वाले विजय कुमार राम को समय पर प्रोन्नति नहीं मिली थी। इस मामले को लेकर वह हाईकोर्ट की एकल पीठ (Single Bench) में गए, जहां अदालत ने उनकी दलीलों को सही मानते हुए उनके पक्ष में फैसला सुनाया और संबंधित विभाग को उन्हें प्रोन्नति देने का निर्देश दिया।

लेकिन, सरकार ने एकल पीठ के इस फैसले को मानने के बजाय इसे हाईकोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दे दी। सरकार की इस अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस आनंद सेन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पाया कि सरकार बेवजह इस मामले को लंबा खींच रही है।

कोर्ट ने लगाई कड़ी फटकार

जस्टिस आनंद सेन ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के अधिकारियों के काम करने के तरीके पर तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही अजीब स्थिति है कि सरकार एक तरफ तो अनावश्यक मुकदमों का बोझ कम करने के लिए समितियां बना रही है, वहीं दूसरी तरफ उसके अधिकारी छोटे कर्मचारियों के खिलाफ इस तरह के मामलों में अपील दायर कर रहे हैं।

कोर्ट ने साफ कहा कि इस तरह की गैर-जरूरी अपीलों से न सिर्फ अदालत का कीमती समय बर्बाद होता है, बल्कि सरकारी खजाने पर भी बोझ पड़ता है, जो कि जनता का पैसा है। कोर्ट ने माना कि यह मामला अपील करने लायक था ही नहीं।

सरकार को भरना होगा हर्जाना

कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील को खारिज करते हुए 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। यह राशि सरकार को उस कर्मचारी विजय कुमार राम को देनी होगी, जिसे इस अनावश्यक मुकदमेबाजी के कारण मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान होना पड़ा। हाईकोर्ट का यह फैसला उन अधिकारियों के लिए एक कड़ा संदेश है जो छोटे-छोटे मामलों में अहं की लड़ाई बनाकर सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग करते हैं।

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