शांति समझौते पर हमास का यू-टर्न, गाजा खाली करने के प्रस्ताव को बताया 'बकवास'; अधर में लटकी डील

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गाजा में स्थायी शांति स्थापित करने के प्रयासों को बड़ा झटका लगा है। महीनों की बातचीत और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता के बाद शांति समझौते पर बनी सहमति के बावजूद, हमास ने अब इस पर औपचारिक रूप से हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है। हमास ने इस समझौते के तहत गाजा खाली करने और निशस्त्रीकरण (हथियार डालने) के प्रस्तावों को "बकवास" और अव्यवहारिक बताते हुए खारिज कर दिया है, जिससे दो साल से चल रहे संघर्ष को समाप्त करने की उम्मीदें धूमिल हो गई हैं।

क्यों पीछे हटा हमास?

जानकारी के मुताबिक, इस शांति समझौते में कई चरण थे, जिसकी शुरुआत बंदियों की रिहाई और इजरायली सेना की आंशिक वापसी से होनी थी। हालांकि, समझौते के आगे के चरणों में हमास के निशस्त्रीकरण और गाजा के विसैन्यीकरण की बात कही गई है, जो हमास को मंजूर नहीं है। हमास के सूत्रों का कहना है कि वे तब तक हथियार डालने पर बात नहीं करेंगे जब तक इजरायली सेना फिलिस्तीनी भूमि पर काबिज है।

एक और बड़ा पेंच इजरायली सेना की पूर्ण वापसी की समय-सीमा को लेकर है। हमास चाहता है कि समझौते में इजरायली सेना की गाजा से पूरी तरह वापसी के लिए एक स्पष्ट और निश्चित समय-सीमा तय हो, लेकिन इजरायल इस पर कोई ठोस आश्वासन देने को तैयार नहीं है।

क्या था ट्रंप का 20-सूत्रीय शांति प्लान?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी टीम ने इस शांति योजना को तैयार किया था, जिसमें 20 बिंदु शामिल थे। इसके मुख्य बिंदु थे:

  • हमास द्वारा बंधकों और इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी कैदियों की रिहाई।
  • गाजा से इजरायली सेना की चरणबद्ध वापसी।
  • गाजा का पूर्ण विसैन्यीकरण और हमास का निशस्त्रीकरण।
  • अंतरराष्ट्रीय निगरानी में गाजा में एक टेक्नोक्रेट सरकार का गठन।

हालांकि इजरायल और हमास ने इस योजना के पहले चरण पर सहमति जताई थी, लेकिन निशस्त्रीकरण जैसे विवादास्पद मुद्दों पर आकर बात अटक गई है।

इजरायल का सख्त रुख

दूसरी ओर, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपना रुख कड़ा कर लिया है। उन्होंने साफ कहा है कि अगर हमास आसानी से हथियार नहीं डालता है, तो उसे "मुश्किल तरीके" से निशस्त्र किया जाएगा। नेतन्याहू ने यह भी संकेत दिया कि यदि समझौता पूरी तरह से लागू नहीं होता है तो युद्ध फिर से शुरू हो सकता है।

हमास के इस ताजा कदम ने मध्य पूर्व में शांति की उम्मीदों पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा दिया है। अब यह देखना होगा कि मध्यस्थता कर रहे देश, कतर और मिस्र, इस गतिरोध को तोड़ने के लिए क्या नया रास्ता निकालते हैं।

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