Government Extension : लोकतंत्र के पर्व पर तेजस्वी का अलग सुर चुनावी लड़ाइयों से बेहतर सीधे सरकार को मिल जाए सत्ता
News India Live, Digital Desk: Government Extension : राष्ट्रीय जनता दल RJD के प्रमुख नेता और बिहार के विपक्ष के अग्रणी चेहरे, तेजस्वी यादव ने एक बार फिर ऐसा बयान दिया है, जिसने भारतीय राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि चुनावों की आवश्यकता ही नहीं है, इसके बजाय सरकार को उसका कार्यकाल सीधा आगे बढ़ा देना चाहिए, यानी बिना वोटिंग के उसे सत्ता में बने रहने का मौका दिया जाना चाहिए। उनका यह विचार एक बार फिर सार्वजनिक मंच पर दोहराया गया है और इसने खूब सुर्खियां बटोरी हैं।
तेजस्वी यादव का तर्क है कि अगर सरकार का कार्यकाल सीधे बढ़ा दिया जाए, तो इससे देश को चुनावी खर्च के रूप में अरबों रुपये बचाने में मदद मिलेगी। उनका मानना है कि इस कदम से 'चुनावी झगड़े' या राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के बीच होने वाली बेवजह की लड़ाइयां भी खत्म हो जाएंगी, जो अक्सर सामाजिक तनाव का कारण बनती हैं। वे कहते हैं कि इस तरह की पहल से राजनीतिक स्थिरता आ सकती है और विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है, बिना हर पांच साल में होने वाली चुनावी उथल-पुथल के।
यह कोई पहला मौका नहीं है जब तेजस्वी यादव ने ऐसा असामान्य सुझाव दिया है। उनका यह विचार सीधे तौर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया, जिसमें जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है, को दरकिनार करता है। लोकतंत्र का मूल ही चुनाव हैं, जिनके जरिए जनता अपने नेता और सरकार चुनती है। चुनावों को लोकतंत्र का पर्व भी कहा जाता है, जहां हर नागरिक को अपना मताधिकार प्रयोग कर देश की दिशा तय करने का मौका मिलता है। ऐसे में, चुनावों को टालने या सरकार को बिना जनता के जनादेश के सीधे कार्यकाल बढ़ाने की बात कहना, निश्चित रूप से संवैधानिक और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है।
तेजस्वी यादव का यह बयान कि यह कदम सभी के लिए 'लाभदायक' होगा, इस आधार पर आधारित है कि इससे पैसों की बचत होगी और कोई विवाद नहीं होगा। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि यह बयान राजनीतिक फायदे के लिए दिया गया है या यह उनकी राजनीतिक मजबूरी दर्शाता है। फिर भी, उनके इस बयान ने एक दिलचस्प बहस छेड़ दी है कि क्या भारतीय चुनाव प्रणाली के भारी-भरकम खर्च और अंतहीन प्रचार अभियानों का कोई वैकल्पिक तरीका हो सकता है, भले ही उनका सुझाव वर्तमान लोकतांत्रिक ढांचे में कितना भी अकल्पनीय क्यों न हो।
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