पूर्णाहुति एवं विदाई के साथ चार दिवसीय गायत्री महायज्ञ का समापन

सहरसा,08 मार्च (हि.स.)।गायत्री शक्तिपीठ के तत्वावधान में आयोजित गायत्री महायज्ञ के अंतिम चौथे दिन शुक्रवार को प्रातःकालीन यज्ञस्थल पर देवपूजन के साथ 51 कुण्डों पर गायत्री महायज्ञ का शुभारंभ हुआ।वही महाशिवरात्रि के अवसर पर 52 कुण्डों पर शिवलिंग के प्रतीक रूप में रखकर महादेव एवं पार्वती की पूजा की गई।

डॉ. अरुण कुमार जायसवाल ने महाशिवरात्रि के संबंध में कहा वर्ष में चार रात्रि होती है,जिसमें सबसे पहली और श्रेष्ठ रात्रि शिवरात्रि होती है।शक्ति के तीन रूप होते हैं लक्ष्मी,काली और सरस्वती। ये तीनों शक्तियाँ गायत्री मंत्र में निहित है।शिवलिंग पुरुष और प्रकृति का रुप है।परमात्मा और प्रकृति के मिलन का प्रतीक है। उसके बाद गायत्री महायज्ञ की पूर्णाहुति की गई। समारोह के पश्चात शांतिकुंज से आए संतों की अश्रुपूर्ण भावभीनी विदाई हुए,विदाई गीत गाकर की गई।

विदाई समारोह में डाक्टर अरुण कुमार जायसवाल, विशिष्ट अतिथिगण महापौर बैन प्रिया,समस्त यज्ञ समिति के सदस्यगण,और शक्तिपीठ के समस्त परिजन उपस्थित थे।राष्ट्र जागरण 51 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ के तीसरे दिन गुरुवार की संध्याकालीन कार्यक्रम में सत्संग एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम में गायत्री शक्तिपीठ के तत्वावधान में चल रहे बाल संस्कारशाला के बच्चों ने सोशल मीडिया नामक अद्भुत एवं प्रेरणादायक लघु नाटिका की प्रस्तुत किया।जिसका मूल उद्देश्य समाज को सोशल मिडिया और मोबाइल के दुष्प्रभाव से जागरुक करना था।इसके साथ हीं स्वरांजली सरोजनी के कथाकारों द्वारा भव्य प्रदर्शन हुआ। साथ ही संध्याकालीन दीप महोत्सव में पूरे यज्ञस्थल को दीपों से सजाया गया।

हजारों दीपक से पूरा यज्ञस्थल दीपोमय होकर मानों ज्ञान का प्रकाश फैला रहा है।इस दीपोत्सव में हजारों श्रद्धालुगण उपस्थित थे।इस दौरान युग संगीत हुए।परम पुज्य गुरुदेव गुग ऋषि के अमृत संदेश को शांतिकुंज से आए संत सुनील शर्मा ने जन जन तक पहुंचाते हुए कहा-यज्ञ समाज में परिवर्तन का कार्य करता है।धर्म और अधर्म की लडाई में धर्म पराजित नहीं होता है।इसलिए इन्सान को कभी धर्म का मार्ग नही छोड़ना चाहिए। सद्गुणों के समूह को भगवान कहते हैं।दीप यज्ञ से समाज का अंधकार दूर हो जाता है।