Excessive use of mobile phone : न्यूरोलॉजिस्ट की चेतावनी और दिमाग पर गहराता खतरा
News India Live, Digital Desk: Excessive use of mobile phone : आज की डिजिटल दुनिया में मोबाइल फोन हमारी जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। हम सुबह आँख खोलते ही सबसे पहले अपने फोन को ढूंढते हैं, और रात को सोते समय भी वह हमारे हाथ में होता है। सोशल मीडिया फीड्स स्क्रॉल करना, मैसेज चेक करना या ऑनलाइन वीडियो देखना हमारी एक सामान्य आदत बन गई है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसका हमारे दिमाग पर क्या असर हो रहा है, खासकर तब जब हम इसे सोने से पहले या जागने के तुरंत बाद इस्तेमाल करते हैं?
दिल्ली के मणिपाल हॉस्पिटल के प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. प्रवीण गुप्ता ने इस आदत के गंभीर परिणामों के बारे में चेतावनी दी है। उनके अनुसार, यह हमारी नींद की गुणवत्ता, मानसिक स्वास्थ्य और दिमाग की कार्यप्रणाली पर बहुत नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
नींद पर प्रभाव: जब हम रात को सोने से ठीक पहले मोबाइल फोन इस्तेमाल करते हैं, तो उससे निकलने वाली नीली रोशनी हमारी आँखों पर सीधी पड़ती है। यह नीली रोशनी 'मेलाटोनिन' नामक हार्मोन के उत्पादन को दबा देती है। मेलाटोनिन वह हार्मोन है जो हमारे शरीर में नींद-जागने के चक्र (सर्केडियन रिदम) को नियंत्रित करता है और हमें नींद लाने में मदद करता है। मेलाटोनिन के स्तर में कमी आने से हमें देर तक नींद नहीं आती, हमारी नींद गहरी नहीं हो पाती और अगले दिन हम थका हुआ और कम ऊर्जावान महसूस करते हैं। यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहे तो अनिद्रा (इन्सॉम्निया) और अन्य गंभीर नींद विकारों का कारण बन सकती है।
मानसिक और भावनात्मक प्रभाव: सुबह आँख खुलते ही मोबाइल फोन पर ईमेल, मैसेज या सोशल मीडिया नोटिफिकेशन चेक करने से हमारे दिमाग पर अचानक सूचनाओं का बोझ आ जाता है। इससे हमारा दिमाग बिना तैयार हुए ही दिन की भागदौड़ में लग जाता है। यह तनाव, चिंता और नकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा दे सकता है, क्योंकि आप अपने दिन की शुरुआत शांत और केंद्रित रहने के बजाय दूसरों की मांगों और अपेक्षाओं से करते हैं। इसके अलावा, लगातार स्क्रॉलिंग दिमाग को उत्तेजित रखती है, उसे आराम नहीं करने देती, जिससे ध्यान केंद्रित करने में परेशानी, चिड़चिड़ापन और याददाश्त संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। एक प्रकार से, यह आदत आपको दिन भर एक वर्चुअल दुनिया में व्यस्त रखती है, जिससे आप वर्तमान क्षण और अपने आसपास के लोगों से डिस्कनेक्ट महसूस करने लगते हैं।
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