चुनाव आयोग का राहुल गांधी पर 'सर्जिकल स्ट्राइक', 7 दिन में हलफनामा दो, वरना देश से माफी मांगो

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भारतीय राजनीति के इतिहास में शायद यह पहली बार हो रहा ਹੈ, जब देश के चुनाव आयोग (Election Commission of India - ECI) ने विपक्ष के एक इतने बड़े नेता को सीधी और खुली चेतावनी जारी की हैं। EVM पर 'वोट चोरी' के गंभीर आरोपों को लेकर चल रहे टकराव में चुनाव आयोग ਨੇ कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता, राहुल गांधी (Rahul Gandhi), के खिलाफ अब तक का सबसे सख्त रुख अख्तियार कर लिया ਹੈ। आयोग ने राहुल गांधी को एक नोटिस जारी कर 7 दिनों का अल्टीमेटम दिया है - "या तो अपने 'वोट चोरी' के आरोपों के समर्थन में सबूत के साथ हलफनामा (Affidavit) जमा करें, या फिर देश की जनता और संवैधानिक संस्थाओं से सार्वजनिक रूप से माफी मांगें।"

यह सिर्फ एक नोटिस नहीं, बल्कि चुनाव आयोग द्वारा अपनी साख, निष्पक्षता और EVM की विश्वसनीयता पर उठाए गए सवालों पर एक करारा पलटवार है। इस अल्टीमेटम ने राष्ट्रीय राजनीति में भूचाल ला दिया ਹੈ और अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी का अगला कदम क्या होगा।

आयोग ने नोटिस में क्या कहा? (कड़े और स्पष्ट शब्दों में चेतावनी)

अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस और उसके बाद जारी किए गए नोटिस में, चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को "निराधार", "गैर-जिम्मेदाराना" और "लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करने वाला" बताया है।

आयोग के नोटिस के मुख्य बिंदु:

  1. 7 दिनों का अल्टीमेटम: राहुल गांधी को 7 दिनों के भीतर अपने दावों के पक्ष में ठोस सबूत पेश करने होंगे। ये सबूत उन्हें एक कानूनी रूप से वैध शपथ पत्र या हलफनामे के रूप में देने होंगे।
  2. माफी की मांग: अगर वे सबूत पेश करने में विफल रहते हैं, तो उन्हें अपने बयानों के लिए बिना शर्त राष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि उनके आरोपों ਨੇ करोड़ों मतदाताओं के विश्वास को ठेस पहुंचाई ਹੈ और दुनिया भर  भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल किया है।
  3. कानूनी कार्रवाई की चेतावनी: आयोग ने यह भी संकेत दिया ਹੈ कि अगर राहुल गांधी इन दोनों में से कोई भी कदम नहीं उठाते ہیں, तो आयोग उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई करने पर भी विचार कर सकता ਹੈ, जिसमें मानहानि का मुकदमा भी शामिल हो सकता ਹੈ।

टकराव की जड़: कहां से शुरू हुआ यह 'महाभारत'?

यह विवाद राहुल गांधी और विपक्षी 'इंडिया' गठबंधन द्वारा लगातार EVM की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाने से शुरू हुआ। विपक्ष का आरोप है कि EVM में छेड़छाड़ संभव ਹੈ और इसलिए सभी VVPAT पर्चियों का 100% मिलान होना चाहिए। हाल ही में राहुल गांधी ने इस मुद्दे को और हवा देते हुए इसे 'वोट चोरी' का नाम दे दिया, जिसने चुनाव आयोग को यह सख्त कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया।

आयोग का तर्क है कि ऐसे आधारहीन आरोप लगाने से न केवल एक संवैधानिक संस्था का अपमान होता है, बल्कि यह उन लाखों चुनावकर्मियों की कड़ी मेहनत और ईमानदारी का भी अपमान है जो निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए दिन-रात काम करते हैं।

 

राहुल गांधी और कांग्रेस के सामने अब क्या हैं विकल्प?

चुनाव आयोग के इस आक्रामक रुख के बाद अब गेंद पूरी तरह से राहुल गांधी के पाले में है। उनके सामने कुछ सीमित विकल्प हैं:

  • विकल्प 1: सबूत पेश करना: वे कुछ तकनीकी विशेषज्ञों की रिपोर्ट्स, या चुनाव प्रक्रिया में कथित विसंगतियों के उदाहरणों को सबूत के तौर पर पेश करने की कोशिश कर सकते हैं। हालांकि, ऐसे सबूत जुटाना जो अदालत में टिक सकें, बेहद मुश्किल होगा।
  • विकल्प 2: माफी मांगने से इनकार करना: राहुल गांधी अपने स्टैंड पर कायम रह सकते और माफी मांगने से इनकार कर सकते हैं, जिससे यह कानूनी लड़ाई और लंबी खिंच सकती है। राजनीतिक रूप से, यह उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में पेश करेगा जो सत्ता और संस्थाओं से डरता नहीं है।
  • विकल्प 3: बयान को नरम करना: वे अपने बयान को नरम करते हुए यह कह सकते अपमान नहीं था, बल्कि वह केवल चुनावी प्रक्रिया में सुधार की मांग कर रहे थे।
  • विकल्प 4: कानूनी चुनौती देना: वे चुनाव आयोग के नोटिस को ही अदालत में चुनौती दे सकते हैं।

 

भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण

यह टकराव भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण हैं। यह तय करेगा कि राजनीतिक बयानबाजी की सीमाएं क्या होनी चाहिए और संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता और सम्मान को कैसे बनाए रखा जा सकता है। अगले 7 दिन यह तय करेंगे कि यह सियासी तूफान शांत होता ਹੈ या भारतीय राजनीति के एक नए और लंबे कानूनी और राजनीतिक संघर्ष का रूप लेता हैं।

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