Depth of Judiciary: वर्षों पुराने बलात्कार केस के दोषी को मिली राहत अब जुवेनाइल कानून के तहत होगा पुनर्वास
News India Live, Digital Desk: Depth of Judiciary: देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने 1988 के एक जघन्य बलात्कार के मामले में एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसने एक बार फिर न्याय प्रणाली की जटिलताओं और मानव जीवन पर इसके गहरे प्रभावों को उजागर किया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के एक दोषी की उम्रकैद की सज़ा को रद्द कर दिया है और उसके केस को अब जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (किशोर न्याय बोर्ड) को सौंपने का निर्देश दिया है। यह फैसला इस तथ्य पर आधारित है कि अपराध के समय दोषी नाबालिग था।
यह पूरा मामला लगभग 36 साल पुराना है। 1988 में एक अपहरण और सामूहिक बलात्कार की घटना हुई थी, जिसके आरोप में इस व्यक्ति को सज़ा सुनाई गई थी। इस लंबी कानूनी लड़ाई के दौरान, दोषी ने बार-बार यह तर्क दिया था कि जिस समय अपराध हुआ, वह नाबालिग था। इस दावे की पुष्टि के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था, जिसने जांच के बाद अनुमान लगाया था कि अपराध के समय उसकी आयु 17 साल, 11 महीने और 14 दिन थी। यह उम्र किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 की परिभाषा के अनुसार "नाबालिग" की श्रेणी में आती है, क्योंकि यह 18 वर्ष से कम है।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने यह फैसला सुनाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि चूंकि अपराध के समय व्यक्ति नाबालिग था, इसलिए उसके खिलाफ वयस्क के रूप में हुई उम्रकैद की सजा मान्य नहीं होगी। न्यायालय ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2000 के प्रावधान ऐसे मामलों में लागू होते हैं। अब यह मामला किशोर न्याय बोर्ड को भेजा जाएगा। बोर्ड यह जांच करेगा कि क्या दोषी को सुधार कर समाज की मुख्यधारा में वापस लाया जा सकता है, या क्या किसी अन्य उचित तरीके से उसके पुनर्वास का प्रयास किया जा सकता है। वर्तमान में इस व्यक्ति की उम्र 52 वर्ष है।
यह फैसला कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दिखाता है कि न्यायालय अपराध के समय व्यक्ति की आयु को कितना गंभीरता से लेता है और किशोर न्याय कानूनों के तहत उसका मूल्यांकन कैसे किया जाना चाहिए। यह दोषी को पूरी तरह से बरी नहीं करता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि उसके मामले को सही कानूनी दायरे और उचित पुनर्वास के सिद्धांतों के तहत देखा जाए, जैसा कि किशोर न्याय अधिनियम निर्धारित करता है। यह कानून किशोर अपराधियों को वयस्क अपराधियों से अलग मानता है ताकि उन्हें सुधारने का अवसर मिले।
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