Controversy : सदन किसी के बाप का नहीं RJD विधायक भाई वीरेंद्र के बयान से बिहार विधानसभा में जोरदार हंगामा नीतीश तेजस्वी पर गरमाई बहस

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News India Live, Digital Desk: बिहार विधानसभा में चल रहे सत्र के दौरान उस वक्त भारी हंगामा खड़ा हो गया जब राष्ट्रीय जनता दल RJD के विधायक भाई वीरेंद्र ने एक विवादित बयान दे दिया। उन्होंने जोर देकर कहा, "यह सदन किसी के बाप का नहीं है," जिसके बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बहस और तकरार शुरू हो गई। यह बयान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच चल रही जुबानी जंग के बीच आया है, जिससे राज्य की राजनीति में पारा और चढ़ गया है।

दरअसल, विधानसभा सत्र के दौरान जब किसी मुद्दे पर बहस चल रही थी, तभी भाई वीरेंद्र ने किसी बात पर अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए इस मुहावरे का प्रयोग कर दिया। उनका इशारा सत्ता पक्ष की तरफ था, जहां भाजपा और जदयू के विधायक बैठे थे। इस बयान को सदन की मर्यादा और व्यवस्था के खिलाफ मानते हुए सत्ता पक्ष के विधायकों ने तुरंत कड़ा विरोध जताना शुरू कर दिया। उनके बयान को अभद्र और अप्रिय बताते हुए जमकर नारेबाजी की गई, जिससे सदन में अराजकता का माहौल पैदा हो गया।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (जो वर्तमान में महागठबंधन सरकार का हिस्सा हैं, अगर यह बयान नीतीश की एनडीए वापसी के बाद का है जैसा कि सामान्य संदर्भ होता है) के बीच राजनीतिक संबंधों की जटिलता के बीच ऐसे बयान और भी संवेदनशील हो जाते हैं। भाई वीरेंद्र को तेजस्वी यादव का करीबी माना जाता है, और उनके इस बयान से नीतीश कुमार के समर्थक और भी नाराज हुए होंगे। हालांकि, मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने सीधे तौर पर इस बयान पर तत्काल प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उनकी पार्टी के सदस्यों ने विधायक की निंदा की।

इस हंगामे के दौरान विधानसभा अध्यक्ष को हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने भाई वीरेंद्र के बयान पर आपत्ति जताई और सभी सदस्यों से सदन की गरिमा बनाए रखने का आग्रह किया। उन्होंने उनसे अपने शब्दों को वापस लेने और अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की अपील की। बिहार की विधानसभा अक्सर अपने तीखे बहस और वाकपटुता के लिए जानी जाती है, लेकिन कई बार ये बहसें व्यक्तिगत और अमर्यादित टिप्पणियों तक पहुंच जाती हैं।

यह घटना दर्शाती है कि बिहार में राजनीतिक मतभेद कितने गहरे हैं और किस प्रकार नेताओं के बीच शाब्दिक जंग अक्सर संसदीय मर्यादाओं को पार कर जाती है। ऐसे बयान लोकतंत्र में बहस की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाते हैं और जनता के बीच गलत संदेश भेजते हैं। उम्मीद की जाती है कि सभी राजनीतिक दल भविष्य में सदन की गरिमा का ध्यान रखेंगे और अपनी बातों को सम्मानजनक तरीके से रखेंगे।

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